आप दुनिया से कुछ प्राप्त करना चाहते हैं, विद्या, बुद्धि संपादित करना चाहते हैं, तो त्याग कीजिए, गांठ में से कुछ खोलिए। ये चीजें बड़ी महंगी हैं। कोई नियामक लूट के माल की तरह मुफ्त नहीं मिलती। दीजिए, आपके पास पैसा, रोटी, विद्या, श्रद्धा, सदाचार, भक्ति, प्रेम, समय, शरीर जो कुछ हो, मुक्त हस्त होकर दुनिया को दीजिए, बदले में आप को बहुत मिलेगा। गौतम बुद्ध ने राजसिंहासन का त्याग किया, गांधी ने अपनी बैरिस्टरी छोड़ी, उन्होंने जो छोड़ा था, उससे अधिक पाया।
उसने हाथ पसार कर मुझ से कुछ मांगा। मैंने अपनी झोली में से अन्न का एक छोटा दाना उसे दे दिया। शाम को मैंने देखा कि झोली में उतना ही छोटा एक सोने का दाना मौजूद था। मैं फूट-फूट कर रोया कि क्यों न मैंने अपना सर्वस्व दे डाला, जिससे मैं भिखारी से राजा बन जाता।
ईश्वर मनुष्य को एक साथ इकठ्ठा जीवन न देकर क्षणों के रूप में देता है। एक नया क्षण देने के पूर्व वह पुराना क्षण वापिस ले लेता है। अतएव मिले हुए प्रत्येक क्षण का ठीक-ठीक सदुपयोग करो जिससे तुम्हें नित्य नए क्षण मिलते रहें। प्रेम और समता मनुष्य को ज्ञान देता है कि वह अपनी सीमाओं से बाहर भी है और वह अखिल जगत की आत्मा का ही भाग है। इसलिए उस ईश्वर ने जो कुछ तुमकों दे रखा है, उसे जरूरतमंदों में बाटने की हर संभव प्रयास करना चाहिए।