शास्त्रोंक्त ऐसी मान्यता भी है की इस मंत्र के उच्चारण के बिना पूजा पाठ के आयोजन अधुरे ही माने जाते हैं। इसलिए पूजा के बाद होने वाली आरती के समपन्न होते ही इस मंत्र का उच्चारण किया ही जाता है। शास्त्रों में इस मंत्र को भगवान शिव जी का अति प्रिय मंत्र बताया गया है- जो इस प्रकार है-
स्तुति मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
गर्भवती स्त्री रोज सुबह-शाम उच्चारण करें यह मंत्र, जन्म लेगी संस्कारवान संतान
इस अलौकिक मंत्र के प्रत्येक शब्द में भगवान शिवजी की स्तुति की गई है। इसका अर्थ इस प्रकार है-
– कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
– करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार है।
– संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार है।
– भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।
– सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।
अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार है, संसार के सार है और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
इसलिए आवश्यक है यह मंत्र स्तुति
देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए है। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा की गई थी। ये स्तुति इसलिए गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे, शिव श्मशान वासी है, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। ऐसे शिवजी हमारे मन में शिव वास कर, मृत्यु का भय दूर करें और हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें।
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