24 एकादशियों के व्रत का फल
निर्जला भीमसेनी एकादशी के दिन व्रत व उपवास करने का विधान भी है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। निर्जला अर्थात पूरे दिन जल के बिना रहना, इसी कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह एक कठिन व्रत होता है। इस एकादशी का व्रत करने से साल की 24 एकादशियों के व्रत का फल स्वतः ही मिल जाता है।
निर्जला एकादशी पूजा
निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिये दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन आरंभ हो जाता है। इस एकादशी में “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप किया जाता है। इस दिन गौ दान, जप, तप गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ माना जाता है। इस दिन श्री विष्णु जी की पूजा कि जाती है।
निर्जला एकादशी 13 जून को एक बार कर लें ये काम हो जायेगी हर इच्छा पूरी
भीमसेनी एकादशी व्रत के लाभ
निर्जला एवं भीमसेनी एकादशी व्रत कथा- महाभारत काल में महारानी कुंती निर्जला एकादशी का व्रत उपवास पूरे विधि विधान से किया करती थी। देवी कुंती के मन में एक अति बलशाली पुत्र की कामना हुई तो उन्होंने भगवान नारायण से प्राप्त निर्देशानुसार इस ज्येष्ठ माह की निर्जला एकादशी तिथि को व्रत रखने के साथ इस मंत्र का जप भी नियमित करने लगी। व्रत के परिणाम स्वरूप उन्हें महाबलशाली वीर योद्धा भीम संतान के रूप में प्राप्त हुए। तब से ही शक्तिशाली संतान की कामना से इस दिन उपवास रखकर इस मंत्र का जप किया जाने लगा।
मंत्र
महाशक्ति शाली संतान के लिए इस मंत्र का जप करें- निर्जला एकादशी के दिन ग्यारह सौ बार तुलसी या मोती की माला से इस मंत्र का जप करें।
।। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय।।
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