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इस पौराणिक कथा को पढ़े बिना अधूरी है नाग पंचमी पूजा, जानें कब है नाग पंचमी और नाग पंचमी पूजा मुहूर्त

Nag Panchami Katha: नाग पंचमी पर नाग की पूजा का विशेष महत्व है। इससे काल सर्प दोष से राहत मिलती है, सुख समृद्धि आती है। लेकिन इस पौराणिक कथा को पढ़े बिना नाग पंचमी पूजा अधूरी रहती है। आइये जानते हैं नाग पंचमी कथा और नाग पंचमी पूजा डेट, मुहूर्त ( Nag Panchami Puja Muhurta)….

भोपालJul 26, 2024 / 12:47 pm

Pravin Pandey

Nag Panchami Katha

नाग पंचमी कथा और नाग पंचमी डेट और मुहूर्त

Nag Panchami Katha 2024: हिंदू धर्म में हर साल सावन शुक्ल पक्ष पंचमी को यानी हरियाली तीज के दो दिन बाद नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इसे भैया पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार पर स्त्रियां नाग देवता की पूजा करती हैं और सर्पों को दूध अर्पित करती हैं। इस दिन स्त्रियां अपने भाइयों और परिवार की सुरक्षा के लिए प्रार्थना भी करती हैं। मान्यता है कि इससे सुख समृद्धि भी आती है। माना जाता है कि सर्पों को अर्पित किया जाने वाला दूध और उनका पूजन नाग देवताओं के समक्ष पहुंच जाता है। इसलिए लोग नाग देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में जीवित सर्पों की पूजा करते हैं।

नाम पंचमी की डेट (Nag Panchami date): 9 अगस्त

सावन शुक्ल पंचमी का प्रारंभः 08 अगस्त 2024 को रात 12:36 बजे यानी 9 अगस्त को सुबह 00.36 बजे से
पंचमी तिथि समापनः 10 अगस्त 2024 को सुबह 03:14 यानी 9 अगस्त देर रात 3.14 बजे
नाग पंचमी पूजा मूहूर्तः 9 अगस्त सुबह 05:54 बजे से 08:31 बजे तक
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नाग पंचमी की कथा (Nag Panchami Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक सेठजी थे, इनके सात बेटे थे। इन सातों का विवाह हो चुका था। इनमें सबसे छोटे बेटे की पत्नी सबसे सुशील और गुणवान थी, लेकिन उसको कोई भाई नहीं था। इससे वह अक्सर दुखी हो जाया करती थी। इस बीच एक दि सबसे बड़ी बहू घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं के साथ डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी लेने गई।

मिट्टी को खोदने के लिए महिलाओं ने खुरपी चलाई तो पास के बिल से एक सांप निकल आया। डर के मारे बड़ी बहू ने सांप को मारने की कोशिश की तो सबसे छोटी बहू ने उसे रोक दिया और समझाया कि यह सर्प निरपराध है और इसे मारना पाप होगा। यह सुनकर बड़ी बहू ने सांप को छोड़ दिया और उसे जाने दिया। इसके बाद सांप एक ओर जाकर बैठ गया। छोटी बहू ने इस सांप को देखकर कहा कि मैं अभी लौटकर आऊंगी इसलिए तुम यहां से मत जाना। छोटी बहू बाकी बहुओं के साथ घर चली गई लेकिन घर जाने के बाद वह घर के कामों में उलझ गई और सांप से किया हुआ वादा भूल गई। अपना वादा छोटी बहू को अगले दिन याद आया।
छोटी बहू को याद आया कि उसने सांप से कुछ वादा किया था और उसे वहां रूकने के लिए कहा था। वह जंगल की तरफ भागकर गई तो छोटी बहू ने देखा कि सांप अभी भी उसी स्थान पर बैठा है जहां उसने उसे रूकने के लिए कहा था। उसने सर्प से कहा कि सर्प भईया प्रणाम। यह सुनकर सर्प बोल पड़ा, उसने कहा कि मैं तुझे झूठ कहने पर डस लेता लेकिन तूने मुझे भाई कहा है इसलिए छोड़ रहा हूं। इसपर छोटी बहू ने माफी मांगी, सर्प ने उसे क्षमा कर दिया और कहा कि आज से तू मेरी बहन और मैं तेरा भाई।
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छोटी बहू ने सर्प को बताया कि उसका कोई भाई नहीं है और आज उसे एक भाई मिल गया, उसके जीवन में एक ही कमी थी जो पूरी हो गई। इसके बाद एक दिन सर्प लड़के का रूप धारण करके छोटी बहू के ससुराल पहुंचा और अपना परिचय छोटी बहू के भाई के रूप में दिया। सांप ने बताया कि मैं बचपन में ही घर से दूर चला गया था और अब अपनी बहन को कुछ दिन के लिए लेने आया हूं। यह सुनकर छोटी बहू को घरवालों ने उसके साथ जाने दिया, छोटी बहू को अब भी इस लड़के के बारे में कुछ नहीं पता था। रास्ते में सांप ने बताया कि मैं वही सांप हूं जो उसदिन मिला था, यह सुनकर छोटी बहू खुश हुई और सांप के साथ चली गई।
सांप के घर में छोटी बहू को ढेर सारा धन दिखा, छोटी बहू वहीं रहने लगी। एक दिन सर्प की माता ने छोटी बहू से कहा कि मैं बाहर जा रही हूं और तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। छोटी बहू को ठंडे दूध वाली बात याद नहीं रही और उसने सांप को गलती से गर्म दूध पिला दिया। इससे सांप का मुंह जल गया और उसकी माता अत्यधिक क्रोधित हो गई। लेकिन बीच में सांप आ गया और माफ करने के लिए कहने लगा। आखिरकार सांप के कहने पर मां का गुस्सा तो दूर हुआ लेकिन उसने छोटी बहू को उसके घर लौट जाने के लिए कह दिया। सर्प और उसके पिता ने छोटी बहू को ढेर सारा धन देकर साथ भेजा।
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नाग पंचमी डेट और नाग पंचमी की पौराणिक कथा
घर लौटी छोटी बहू के पास इतना धन देखकर बड़ी बहू ने कहा कि तेरा भाई इतना धनवान है तो और धन लाकर दे। यह बात सर्प को पता लगी तो वह धन ला-लाकर छोटी बहू के घर देने लगा, एक दिन सर्प ने अपनी बहन को हीरे और मणियों का हार लाकर दिया। इस हार की अद्भुत सुंदरता की बात राजा और रानी तक भी पहुंच गई।
इस पर राजा ने सेठ को हार के साथ बुलावाया। यहां सेठ ने राजा से डर कर छोटी बहू का हार रानी को दे दिया. इसपर छोटी बहू बहुत निराश हुई और अपने सर्प भाई को बोली कि रानी ने मेरा हार छीन लिया है, कुछ ऐसा करो कि रानी जब मेरा हार पहने तो हार सांप बन जाए और जब मैं वो हार पहनूं तो वो फिर से हीरे का हो जाए। सर्प ने बहन की प्रार्थना सुनकर ऐसा ही किया।
जब रानी ने उस हार को पहना तो हार सांप बन गया जिसे देखकर रानी डर के मारे चिल्लाने और चीखने लगी। राजा को यह देखकर छोटी बहू की चाल समझ आ गई और उसे बुलवाकर कहा कि अगर तूने जादू किया है तो वापस ले ले, नहीं तो तुझे दंड दिया जाएगा। छोटी बहू ने बताया कि यह वही हार है और उस हार को गले में डाल लिया। छोटी बहू के गले में जाते ही हार फिर से हीरे और मणियों का हो गया। छोटी बहू ने बताया कि मेरे अलावा कोई और इस हार को पहनता है तो हार खुद ही सांप बन जाता है।
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यह जानकर राजा प्रसन्न हुआ और छोटी बहू को उन्होंने कई उपहार पुरस्कार में दिए। यह सब देखकर बड़ी बहू को ईर्ष्या होने लगी। बड़ी बहू ने छोटी बहू के पति के कान भरने शुरू किए और उसे भड़काया कि तेरी पत्नी ना जाने कहां से धन लाती है। छोटी बहू का पति उससे सवाल-जवाब करने लगा तो सर्प भाई वहां प्रकट हुआ और पूरी कहानी सुनाई। सर्प ने यह भी कहा कि अगर मेरी बहन को किसी ने तकलीफ दी तो मैं उसे डस लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू भाई के प्रति और भी कृतज्ञ हो गई। इसके बाद से ही हर साल वह नाग पंचमी का त्योहार मनाने लगी और तभी से सभी स्त्रियां सर्प को भाई मानकर पूजा करने लगीं।

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