प्राचीन कथा के अनुसार प्राचीनकाल में फाल्गुन शुक्ल एकादशी यानी रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर वाराणसी आते हैं। इस दिन बारात में शामिल देवता होली खेलते हैं, लेकिन किसी कारण महादेव के गण भूत पिशाच होली नहीं खेल पाते।
मान्यता है कि मसाननाथ रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद द्वादशी को खुद भक्तों के साथ होली खेलते हैं। इस समय का दृश्य अनूठा होता है, जगह- जगह लोगों को ठंडई पिलाई जाती है और पान खिलाया जाता है। डमरु के नाद और हर हर महादेव के जयकारों की गूंज से सारा शहर सराबोर हो जाता है। लोग औघड़दानी की लीला भी करते हैं।