पं. गुलशन अग्रवाल के अनुसार इस साल की चैत्र नवरात्रि पर्व की समस्त तिथि उद्यातकालीन और पूर्ण हैं, इससे चैत्र नवरात्रि बिना क्षय और वृद्धि के संपूर्ण 9 दिवसीय है। इस वर्ष नवरात्रि पर्व में महाष्टमी का पूजन दिनांक 16 अप्रैल मंगलवार और रामनवमी का पूजन दिनांक 17 अप्रैल बुधवार को होगा ।
दिनांक 09 अप्रैल मंगलवार 2024
~प्रातः 03.19 बजे से 04.45 बजे तक (अमृत)
~प्रातः 04.46 बजे से 06.12 बजे तक (चर)
~प्रातः 09.19 बजे से 10.52 बजे तक (चर)
~प्रातः 10.53 बजे से दोप. 12.25 बजे तक (लाभ)
~दोप. 12.26 मि. से 01.59 मि. तक (अमृत)
~प्रातः 04.07 बजे से 04.17 बजे तक (ब्रह्मवेला+स्थिर लग्न नवांश+अमृत चौघड़िया)
~प्रातः 04.58 बजे से 06.12 बजे तक (द्वि स्व लग्न+चर चौघड़िया)
~प्रातः 06.18 बजे से 06.29 बजे तक (द्वि स्व लग्न नवांश)
~प्रातः 09.19 बजे से 10.07 बजे तक
(स्थिर लग्न+चर चौघड़िया)
(अभिजीत+अमृत चौघड़िया)
पं. अग्रवाल के अनुसार मां दुर्गा का कलश स्थापना का सबसे अच्छा मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त होता है। इसलिए संभव हो तो इसी मुहूर्त में कलश स्थापना कर माता का आवाहन करना चाहिए। साथ ही अभिजीत मुहूर्त में ही मां शैलपुत्री की पूजा भी संपन्न कर लेनी चाहिए।
जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणाम ।
लोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम ॥ अर्थः मैं सर्वोच्च शक्ति को नमन करता हूं और आग्रह करता हूं कि लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने में और उन्हें प्राप्त करने में मेरी मदद करें।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं प्रिय हैं। मां को भोग में सफेद मिठाई और घी चढ़ाना चाहिए। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करने और ये भोग लगाने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।
1. ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
2. वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
3. या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ ये भी पढ़ेंः Ram Navami 2024: अपने भवन में पहली बार भगवान मनाएंगे बर्थडे, जानें कब है रामनवमी, कितने घंटे का है पूजा मुहूर्त
1. सबसे पहले कलशस्थापना करें और फिर मां शैलपुत्री की पूजा शुरू करें।
2. मां को अक्षत, सफेद फूल, धूप, दीप, फल और दूध से बनी सफेद मिठाई चढ़ाएं।
3. पूजा के दौरान मां के मंत्रों का जाप करें।
4. पूजा के बाद घी के दीपक से मां शैलपुत्री की आरती करें और फिर प्रार्थना करें।
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति,
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥ मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को,
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥2॥ कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥3॥
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥4॥ कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥5॥ शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥ चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू,
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥7॥
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥8॥ कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती,
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥9॥ श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै,
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥10॥