पिता की आज्ञा का पालन
परशुराम महर्षि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे। एक दिन रेणुका नदी के तट पर जल लेने गईं। वहां उन्होंने गंधर्वों को जलक्रीड़ा में रमण करते देख लिया। यह देखकर उनके मन में भी काम भावना जाग गई। जब रेणुका जल लेकर आश्रम वापस लौटीं, तो महर्षि जमदग्नि को अपनी योग शक्तियों से यह बात पता चल गई। उन्होंने इसे एक महान अपराध माना। जमदग्नि ने रेणुका के इस अंश को शुद्ध करने का निर्णय लिया। इसके बाद महर्षि जमदग्नि ने अपने पुत्रों अपनी का वध करने की आज्ञा दी। लेकिन उनके चारों बड़े पुत्र ने इस कठोर आदेश का पालन करने से मना कर दिया। परंतु परशुराम ने पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मानते हुए अपनी मां का गला काट दिया।
पुनर्जीवन और आशीर्वाद
महर्षि जमदग्नि परशुराम की कर्तव्यनिष्ठा को देखकर खुश हुए। महर्षि जमदग्नि ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। परशुराम ने अपनी मां के पुनर्जीवन का वरदान मांगा लिया। महर्षि ने अपनी योग शक्तियों से रेणुका को जीवित कर दिया।