कार्तिक पूर्णिमा को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। एक भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय से जुड़ी हुई है तो वहीं दूसरी कथा देव दिवाली मनाने के लेकर है। जानते हैं पहली कथा (Kartik Purnima 2024)
कार्तिकेय और पूर्णिमा का संबंध (Kartikey Or Purnima ka Sambandh)
धार्मिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि से जुड़ी हुई एक कथा प्रचिलत है। जिसमें कार्तिकेय की पूजा का विशेष महत्व है। कहते हैं एक बार कार्तिकेय और गणेश की प्रथम पूज्य प्रतियोगिता हुई, जिसमें कार्तिकेय के छोटे भाई गणेश को विजयी घोषित हो गए। वहीं इस बात को लेकर कार्तिकेय नाराज हो गए थे। जब स्वयं भगवान शिव और पार्वती कार्तिकेय को मनाने के लिए गए तो उन्होंने क्रोध में शाप दिया था। उन्होंने कहा कि यदि कोई स्त्री उनके दर्शन करने आयेगी तो वो सात जन्म तक विधवा रहेगी। वहीं पुरुषों लेकर कहा कि यदि किसी पुरुष ने दर्शन करने का प्रयास किया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी और इसके बाद नरक में जायेगा। लेकिन इसके बाद किसी तरह शंकर भगवान और पार्वती ने उनका क्रोध शांत किया और उनसे किसी एक दिन दर्शन देने के लिए कहा। जब कार्तिकेय का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को उनके दर्शन करना महा फलदायी बताया।
देवताओं ने शिवलोक में मनाई दिवाली (Devtaon Ne Shivlok M Mnai Diwali)
धार्मिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को भगवान शिव ने तारकासुर नाम के राक्षस का वध किया था। इस शक्तिशाली असुर का संहार होने के बाद देवगण बहुत प्रसन्न हुए। वहीं भगवान विष्णु ने शिवजी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। धार्मिक कथाओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में तारकासुर के तीनों पुत्रों का भी वध किया था। जिन्हें त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता था। जिसकी खुशी में देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीवाली मनाई थी। तभी से ये परंपरा चली आ रही हैं। माना जाता है कि कार्तिक मास पूर्णिमा तिथि के दिन काशी में गंगा स्नान कर दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। ये भी पढ़े: Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा पर 30 साल बाद बन रहा ये शुभ योग, इस तिथि पर किए गए पुण्य कार्य होंगे लाभकारी डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका
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