कब रखें वट पूर्णिमा व्रत और कब करें स्नान दान
वाराणसी के पुरोहित पं. शिवम तिवारी के अनुसार पूर्णिमा स्नान दान और व्रत के लिए सूर्योदय-चंद्रोदय का ध्यान रखना जरूरी होता है। मान्यता है कि सूर्योदय के समय जो तिथि रहे, उस दिन उसी तिथि के अनुसार आचरण व्यवहार किया जाए। विशेष रूप से स्नान दान के लिए उदया तिथि का ध्यान रखना जरूरी होता है। उदयातिथि में पूर्णिमा 22 जून शनिवार को पड़ेगी। इसलिए स्नान दान शनिवार को ही करना चाहिए, साथ ही ऐसे लोग जो चंद्रमा को अर्घ्य नहीं देते वो इसी दिन व्रत रखेंगे। हालांकि ज्येष्ठ पूर्णिमा पूजा पाठ, उपाय दोनों दिन कर सकते हैं।लेकिन पूर्णिमा व्रत रखने वालों को चंद्रमा को अर्घ्य देना होता है। 21 जून को चंद्रोदय शाम 6.48 बजे होगा जबकि 22 जून को चंद्रोदय 7.48 बजे होगा और इस समय आषाढ़ मास की शुरुआत हो जाएगी। इसलिए ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत रखने वाले लोगों को 21 जून को ही व्रत रखना चाहिए। इस तरह पति की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाल वट पूर्णिमा व्रत 21 जून शुक्रवार को होगा, जबकि ज्येष्ठ पूर्णिमा स्नान दान 22 जून शनिवार को करना चाहिए और सत्य नारायण व्रत कथा भी इसी दिन सुनना चाहिए।
यह करें ज्येष्ठ पूर्णिमा पर दान
पं शिवम तिवारी के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा पर किसी पवित्र नदी में सुबह स्नान करें और जरूरतमंदों को अपनी इच्छा अनुसार, भोजन, कपड़े, अनाज आदि का दान करें।पूर्णिमा के उपाय, विष्णुजी चंद्रदेव के मंत्र
पं शिवम तिवारी के अनुसार पूर्णिमा के दिन रात में चंद्र देव को अर्घ्य देकर माता लक्ष्मी की पूजा करना परम सौभाग्यशाली बनाता है। चंद्र दोष कटता है और घर में धन वैभव में वृद्धि होती है। चंद्र व्यापिनी तिथि में पूर्णिमा पर चंद्रमा को अर्घ्य देते समय ऊँ सों सोमाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके अलावा जो व्रत नहीं रख रहे हैं, पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के नाम का जप या ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें, यह सभी कष्टों को दूर करने वाला होता है।21 जून को वट पूर्णिमा व्रत
शुभ योगः शुभ योग शाम 6.42 बजे तकचंद्रोदयः शाम 6.48 बजे
22 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा स्नान दान
शुभ योगः शुक्ल, शाम 04:45 बजे तकचंद्रोदय : 22 जून 7.48 बजे तक
वट पूर्णिमा व्रत और वट सावित्री व्रत में अंतर
पं शिवम तिवारी के अनुसार वट पूर्णिमा व्रत, वट सावित्री व्रत के समान है। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने पति की कुशलता और दीर्घायु के लिए वट पूर्णिमा व्रत रखती हैं। मान्यता है कि दोनों के समय में अंतर की वजह उत्तर भारत और दक्षिण भारत में प्रचलित अमांत और पूर्णिमांत कैलेंडर हैं।अमान्त और पूर्णिमांत चंद्र कैलेण्डर में अधिकांश उत्सव एक ही दिन आते हैं। पूर्णिमांत कैलेंडर का पालन उत्तर भारतीय राज्यों, मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब तथा हरियाणा में किया जाता है। बाकी राज्यों में सामान्यतः अमान्त चंद्र कैलेंडर का पालन किया जाता है। पूर्णिमांत कैलेंडरर में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दौरान मनाया जाता है, जो अक्सर शनि जयंती के दिन पड़ता है। अमान्त कैलेंडर में वट सावित्री व्रत, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है, ज्येष्ठ पूर्णिमा के समय मनाया जाता है। इसीलिए महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं उत्तर भारतीय महिलाओं की तुलना में 15 दिन बाद वट सावित्री व्रत रखती हैं।