इसके बाद सात बार सूत से होलिका को लपेट देना चाहिए। मन में अपनी मनोकामना बोलें, और होलिका की तीन बार परिक्रमा कर पूजन सामग्री पास ही रखकर जल चढ़ाकर वापस आएं। मान्यता है कि इस तरह होलिका की पूजा के बाद मनोकामना व्यक्त करने से वह जल्द पूरी होती है।
4. होलिका में दहन सामग्री अर्पित करते वक्त मंत्रः अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः । अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्।
5. होलिका की भस्म सिर पर लगाते वक्त मंत्र
वंदितासि सुरेंद्रेण ब्रह्मणा शंकरेण च।
अतस्त्वं पाहि मां देवी। भूति भूतिप्रदा भव।।
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होलिका दहन का मुहूर्तः होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह होली का पहला त्योहार होता है, इसके बाद अगले दिन होली खेली जाती है। कई जगहों पर होलिका दहन के वक्त फाग गाए जाते हैं और एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाए जाते हैं। अगले दिन रंग खेला जाता है।
सात मार्च को होलिका दहन का मुहूर्त शाम को 6.24 बजे से 8.51 बजे तक है। इस तरह होलिका दहन के लिए इस साल दो घंटे 26 मिनट का मुहूर्त है। इसके बाद आठ मार्च को होली खेली जाएगी।
होलिका दहन के दिन भद्रा पुंछा का समयः 1.02 से 2.09 बजे तक
भद्रा मुखा का समयः 2.19 से 4.48 बजे तक
होलिका दहन के नियमः होलिका दहन के दो प्रमुख नियम बताए गए हैं।
1. उस समय भद्रा (विष्टिकरण) न हो।
2. पूर्णिमा प्रदोषकाल व्यापिनी होनी चाहिए।
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होलिका दहन की कथा धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। यह बात हिरण्यकश्यप को रास नहीं आती थी, वह प्रह्लाद से कहता था उन्हीं की पूजा करे। वह नहीं माने तो उनको प्रताड़ित करने लगा, जब उसकी प्रताड़ना से काम नहीं बना तो उसने अपनी बहन होलिका जिसे आग में न जलने का वरदान था को आदेश दिया कि प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए।
लेकिन इस घटना में भगवान की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए, उसी की याद में होलिका दहन किया जाता है। इसका एक संदेश यह है कि भगवान अपने भक्त की रक्षा के लिए सदैव उपस्थित रहते हैं।