दरअसल 30 अगस्त को भद्रा काल सुबह 10.58 बजे से शुरु होकर शाम 09.01 बजे तक रहेगा, वहीं पंचक का समय बुधवार, 30 अगस्त 2023 पूर्वाह्न 10.19 बजे से शुरु होकर पंचक का समापन रविवार, 03 सितंबर 2023 पूर्वाह्न 10.38 बजे होगा। ऐसे में जहां भद्रा के समय के पश्चात कई लोग पंचक के कारण भी परेशान बने हुए हैं।
तो ऐसे में आज हम आपको पंचक से जुड़ी कुछ खास जानकारी प्रदान कर रहे हैं। दरअसल यह मान्यता है कि पंचक अशुभ की आशंका लाते हैं। मान्यता है कि पंचक में यदि कोई कार्य होता है तो माना जाता है कि उसकी आवृत्ति पांच बार होती है। ऐसे में इस दौरान कोई भी कार्य किया जाना चाहे वो शुभ हो या अशुभ उचित नहीं माना जाता। लेकिन इसके बावजूद किसी पर्व को लेकर पंचक का काफी अधिक महत्व नहीं है।
पंचक में इन चीजों की है मनाही ?
– दक्षिण दिशा की पंचक में यात्रा करना अच्छा नहीं माना गया है।
– किसी की मृत्यु होने पर पंचक में उसका दाह संस्कार भी करना भी वर्जित है। (लेकिन ऐसा माना जाता है कि यदि किसी परिजन की मृत्यु पंचक में होती है तो उसके दाह संस्कार के समय चन्दन की पांच लकड़ी को शव के साथ पूरे विधि विधान के साथ करने से, पंचक दोष समाप्त हो जाता है और उसके बाद आप अंतिम संस्कार कर सकते हैं)
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– लकड़ी काटने का काम करना भी पंचक के समय में पूरी तरह से वर्जित माना गया है।
– पंचक में पेड़ के पत्ते तोडने की भी मनाही है।
– पंचक में पीतल, तांबा और लकड़ी का संचय करना भी शुभ नहीं माना गयाा है।
– पंचक में मकान की छत डालना, चारपाई बनाना, कुर्सी बनाना, चटाई आदि बुनना, गद्दियां बनाने की भी मनाही है।
रक्षाबंधन 2023 का शुभ समय
इन सब स्थितियों के बीच रक्षाबंधन 2023 के दौरान राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त 2023 को शाम 09.02 बजे सेे 31 अगस्त सुबह 07.05 तक रहेगा। ध्यान रहे कि 31 अगस्त को सावन पूर्णिमा सुबह 07.05 बजे तक है, इस समय भद्रा काल नहीं है।
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ऐसे समझें भद्रा की स्थिति
जानकारों के अनुसार शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि को पूर्वार्द्ध और चतुर्थी व एकादशी तिथि को उत्तरार्द्ध की भद्रा मानी जाती है। जबकि कृष्ण पक्ष में तृतीया व दशमी तिथि को उत्तरार्द्ध जबकिं सप्तमी व चतुर्दशी तिथि को पूर्वार्द्ध की भद्रा (विष्टि करण) माना जाता है। शास्त्रों में भद्रा में रक्षाबंधन निषेध माना गया है।
वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार केवल मृत्युलोक की भद्रा ही त्याज्य होती है इसके विपरीत यदि भद्रा का वास पाताललोक में हो तो वह त्याज्य नहीं मानी जाती, किन्तु कुछ विद्वान मतान्तर से ऐसा नहीं मानते। वहीं कुछ शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि भद्रा का वास कहीं भी हो वह सर्वर्था त्याज्य है।
शास्त्रों के अनुसार पूर्वार्द्ध की भद्रा दिन के समय और उत्तरार्द्ध की भद्रा रात्रि के समय त्याज्य होती है, वहीं शास्त्रों के अनुसार भद्रा का मुख भाग ही त्याज्य है जबकि सभी कार्यों में पुच्छ भाग ग्राह्य है। भद्रा मुख की पांच घटी यानि 2 घंटे ही हर स्थिति त्याज्य हैं। हीं शनिवार की भद्रा को विशेष अशुभ माना गया है।