दीवाली पर पूजी जाने वाली
भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृष्य एवं अदृष्य सभी सम्पत्तियों और अष्ट सिद्धि एवं नौ निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान श्रीगणेश सिद्धि-बुद्धि और शुभ-लाभ के स्वामी तथा सभी अमंगलों एवं विघ्नों के नाशक हैं, ये सत्बुद्धि प्रदान करने वाले हैं। अत: दीपावली के दिन इनके समवेत पूजन से सभी कल्याण-मंगल एवं आनंद प्राप्त होते हैं। दीपावली के दिन चौमुख दीपक रातभर प्रदीप्त रहना शुभ एवं मंगलप्रदायक होता है।
ये है दीवाली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त महालक्ष्मी पूजन में अमावस्या तिथि, प्रदोषकाल, शुभलग्न व चौघडिय़ां विशेष महत्व रखते हैं। महालक्ष्मी पूजन सायंकाल प्रदोषकाल में करना चाहिए। ब्रह्मपुराण में कहा गया है:
कार्तिके प्रदोषेतु विशेषेण अमावस्या निषाबर्धके। तस्यां सम्पूज्येत देवी भोग मोक्ष प्रदायिनीम।।
अर्थात लक्ष्मी पूजा दीपदान के लिए प्रदोष काल (रात्रि का पंचमांष प्रदोष काल कहलाता है) ही विशेषतया प्रशस्त माना जाता है। दीपावली के दिन प्रदोषकाल सायंकाल 5.34 से 8.11 बजे तक रहेगा। सायंकाल 7.14 से 7.52 बजे तक प्रदोष काल, स्थिर वृष लग्न एवं शुभ का चौघडिय़ा रहेगा, अत: लक्ष्मी पूजन का यह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। परन्तु शास्त्रों में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की सम्पूर्ण रात्रि को काल रात्रि माना गया है। अत: सम्पूर्ण रात्रि में पूजा की जा सकती है।
ये भी पढ़ेः दीपावली की रात को किए जाते हैं ये 11 अचूक टोने-टोटके ये भी पढ़ेः 131 वर्ष बाद बना दीवाली पर बुधादित्य योग, लक्ष्मी-पूजन का है यह मुहूर्त मां महालक्ष्मी के इस मंत्र का करें जाप इस दिन सभी घरों, दुकानों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों में महालक्ष्मी पूजन के साथ देहलीविनायक, मां काली, सरस्वती एवं कुबेर की भी पूजा अवश्य करनी चाहिए। दीपावली की रात्रि को कुंकुम, अक्षत तथा पुष्पों से एक-एक नाम मंत्र पढ़ते हुए आठ लक्ष्मियों का पूजन करें-
ऊं आद्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं कामलक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्यलक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योगलक्ष्म्यै नम:। वर्ष भर प्रतिदिन कमलगट्टे की माला से किसी भी लक्ष्मी मंत्र का एक माला जप करते रहें। इससे धन आगमन बना रहता है। घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है।
ये भी पढ़ेः ऐसे करें दीवाली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन, घर आएंगी सुख-समृद्धि ऐसे करें महालक्ष्मी आवाहन और पूजन इस दिन भगवती लक्ष्मी एवं भगवान गणेश की नूतन प्रतिमाओं/चित्रों का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेश जी के दाहिने भाग में माता लक्ष्मी को स्थापित करना चाहियेे। पूजा स्थान को पवित्र कर स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायंकाल शुभ मुहूर्त में इनका पूजन करें। सर्वप्रथम पूर्व अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री धारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने तथा पूजा सामग्री के ऊपर गंगाजल युक्त जल छिड़कें। देवी के चित्र को पुष्प माला पहनाकर, धूप, दीप, अगरबत्ती और शुुद्ध घी के पांच और अन्य सरसों के तेल के दीपक जलाएं।
जल से भरे कलश पर मोली बांधकर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करें। फिर गणेश-लक्ष्मी का तिलक करें, पुष्प अर्पित करें और दाहिने हाथ में पुष्प, चावल, सुपारी, सिक्का और जल लेकर पूजा का संकल्प करें। मूर्तिमयी महालक्ष्मी के पास ही किसी पवित्र पात्र में केसरयुक्त अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य-लक्ष्मी (चांदी का सिक्का, रुपये आदि) स्थापित करके एक साथ दोनों की पूजा करें।
पूजन में सर्वप्रथम स्वस्तिवाचन, कलशपूजन, संकल्प लेकर श्रीगणेश, महालक्ष्मी, ऋद्धि-सिद्धि, इन्द्र, वरूण, कुबेरभण्डारी, शक्तियों सहित ब्रह्मा, विष्णु, महेश, कुलदेवता, स्थानदेवता, सूर्यादि समस्त ग्रह नक्षत्र की पूजा अर्चना करें। लक्ष्मी तथा कुबेर के मंत्रों का यथा शक्ति जप करेें। पूजा के पश्चात् लक्ष्मी जी की आरती, मंत्र पुष्पांजली तथा क्षमा प्रार्थना करें। बड़़ों का आशीर्वाद लें। छोटों को भेंट-उपहार दें।
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