इस कथा के अनुसार, भील नाम का एक डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार सावन के महीना में भील राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया। इसके लिए वह एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। लेकिन जिस पेड़ पर वह डाकू चढ़कर छिपा था, वह बेल यानी बिल्व का पेड़ था। इधर, देखते ही देखते पूरा एक दिन और पूरी रात बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला।
रात-दिन बीत जाने के बाद भी उसे कोई शिकार नहीं मिला, इस कारण भील परेशान हो गया और बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। संयोग से उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। भील जो पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था, वे शिवलिंग पर गिर रहे थे, और इस बात से भील पूरी तरह से अनजान था।