‘कुलदेवता’ (Dinosaur Egg Worship) मानकर पूजा कर रहे थे
मानो तो देव नहीं तो पत्थर। लेकिन मध्य प्रदेश के धार जिले के कुक्षी तहसील क्षेत्र में बाग के ग्राम पाडल्या में जिसे लोग ‘कुलदेवता’ (Dinosaur Egg Worship) मानकर पूजा कर रहे थे वह अंडा निकला और वह भी डायनासोर का। अब कुछ वैज्ञानिकों ने जब जांच की तो सच्चाई सामने आई और लोग हैरान रह गए। मंगलवार को यह मामला मीडिया में आने के बाद पांडलया गांव के वेस्ता मांडलोई ने बताया इन गोलाकार पत्थर जैसे वस्तु की ‘काकर भैरव’ (Dinosaur Egg Worship) के रूप में पूजा कर रहे थे। उनके घर में यह परंपरा पूर्वजों के दौर से ही चली आ रही थी, जिसका वह भी पालन कर रहे थे। उनका मानना है कि ये कुलदेवता (Dinosaur Egg Worship) खेती और मवेशियों की रक्षा करते हैं और उन्हें संकट से बचाते हैं।
खेती के दौरान खुदाई में मिले थे
‘काकर’ (Dinosaur Egg Worship) का मतलब है कि खेत और ‘भैरव’ देवता हैं। मांडलोई की तरह उनके गांव के बहुत से लोग इस तरह की आकृति की पूजा कर रहे थे, जो उन्हें धार और आसपास के इलाकों में खेती के दौरान खुदाई में मिले थे। हालांकि, अब नए तथ्य सामने आने के बाद लोग दुविधा में हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वह देवता (Dinosaur Egg Worship) समझकर पूजा कर रहे थे और करते रहेंगे।
जांच में पता चला कि ये डायनासोर के अंडे
बीते दिनों लखनऊ के बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक धार के ग्राम पाडल्या पहुंचे। डायनासोर (Dinosaur Egg Worship) के इतिहास और मध्य प्रदेश के इस क्षेत्र में उनके अवशेष का पता लगाने पहुंची टीम को पता चला कि यहां खेतों में लोगों को गोलाकार वस्तु (Dinosaur Egg Worship) मिली थी जिसकी लोग पूजा करते हैं। वैज्ञानिकों ने जब इनकी जांच को तो पता चला कि असल में ये डायनासोर के अंडे (Dinosaur Egg Worship) हैं।
पहले भी मिल चुके हैं अंडे
माना जाता है कि मध्य प्रदेश की नर्मदा घाटी में डायनासोर युग में धरती से लुप्त हो चुके इन प्राणियों की अच्छी संख्या थी। इसी साल जनवरी में भी धार में 256 अंडे मिले थे। इनका आकार 15 से 17 सेमी का था। माना जाता है कि 6.6 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर डायनासोर का बसेरा था तब इंसानों की उत्पत्ति नहीं हुई थी।
एक दशक पहले पता चला
बाग के समीप पाडलिया में डायनासोर के अंडे होने के प्रमाण मिले है। एक दशक पहले वैज्ञानिकों ने इसका शोध किया। यहां डायनासोर पार्क बनने का प्रस्ताव वन विभाग ने भेजा था। अभी कुछ बदला नही है। ये सही है कि आदिवासी लोग इनकी पूजा करते है।
– दैविक चौहान, पूर्व रेंजर बाग