लगभग 1908 में भगवान जगदीश, बहन सुभद्रा, भैया बलभद्र की मूर्ति स्थापित होते ही शिवलिंग अदृश्य हो गया। अचानक शिवलिंग अदृश्य होने की घटना आज भी एक राज है। बाद में पुराने शिवमंदिर के गुम्बद के ऊपर ही नये गुम्बद का निर्माण किया गया, लेकिन पुराने गुम्बद से कोई छेड़छाड़ नहीं किया गया। कुछ पुराने अवशेष भी थे, इसे भी नहीं छेड़ा गया। शास्त्रों के अनुसार गुम्बद तोड़ना नहीं चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है। कुछ वर्ष पहले गुम्बद के ऊपर टाइल्स लगाए, ताकि सुरक्षा बनी रहे।
Dhamtari News: आज भी भवन में कोई दरार नहीं
जगदीश मंदिर का गुम्बद आज भी मजबूती का एक नमूना है। जानकारों के अनुसार गर्भगृह क्षेत्र का निर्माण लगभग 130 साल पहले हुआ था। चूना-गुड़ से ईंट की जोड़ाई और निर्माण होना बताया जाता है। खासबात ये है कि आज इतने वर्षों बाद भी कही कोई दीवार में दरार तक नहीं आई है। मंदिर छोटी पड़ने पर इसके कुछ दशक बाद गर्भगृह के बाहर कंट्रक्शन हुआ। मंदिर की दीवार, फ्लोरिंग, छत आज भी मजबूती से खड़ा है।
Dhamtari News: मंदिर के पीछे है तुलसी का पेड़
तुलसी या तुलसी के पत्ते भगवान जगदीश की प्रार्थना और प्रसाद का अभिन्न अंग है। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ का तुलसी के पत्तों के प्रति झुकाव है और उन्हें तुलसी प्रेमी भगवान कहा जाता है। जगदीश मंदिर धमतरी के पीछे भी तुलसी का विशाल पेड़ है। सप्ताह में 2 दिन छोड़कर रोज भगवान को तुलसी चढ़ाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार तो भोग में तुलसी के पत्तों को अनिवार्य बताया गया है।