प्रदेश में नगर निकायों के निर्वाचित बोर्डों का कार्यकाल एक दिसंबर को समाप्त हो चुका है। इसके बाद निकायों में दो दिसंबर से छह महीने के लिए प्रशासकों की तैनाती हो चुकी है। नगर निकाय एक्ट के अनुसार सामान्य तौर पर प्रशासकों का कार्यकाल अधिकतम छह महीने ही होता है। इस अवधि में नए चुनाव कराए जाने अनिवार्य हैं, लेकिन प्रदेश में नए निकाय चुनाव कराने से पहले आरक्षण निर्धारण की प्रक्रिया तक प्रारंभ नहीं हो पाई है। इसके लिए एक्ट में संशोधन करते हुए ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाना है।
यह काम कैबिनेट बैठक के जरिए ही हो पाएगा, लेकिन लोकसभा चुनाव आचार संहिता के कारण उसमें बाधा आ रही है। अब यदि तेजी से काम शुरू हो तो भी चुनाव कराने में ढाई महीने तक का समय लग सकता है। ऐसे में प्रशासकों का कार्यकाल दो जून से आगे फिर बढ़ना तय है। हालांकि 2019 में भी निकाय चुनाव समय पर नहीं हो पाए थे लेकिन तब प्रशासकों के लिए तय छह माह के कार्यकाल के भीतर ही नए चुनाव करा लिए गए थे।
नाम चढ़ाने के लिए नहीं देनी होगी फीस
इस बीच प्रदेश के नगर निकायों में वोटर लिस्ट में संशोधन का काम तेजी से चल रहा है। लेकिन कई जगह से लोग बीएलओ के स्तर से इसके लिए एक रुपये का चालान जमा करने को कहा जा रहा है। राज्य निर्वाचन आयुक्त चंद्रशेखर भट्ट के मुताबिक विशेष कैंप के दौरान उक्त शुल्क माफ कर दिया गया है। इस संबंध में पहले ही आदेश जारी हो चुके हैं कि संबंधित जिलाधिकारी इसका सख्ती से पालन कराएंगे। विधानसभा उपचुनाव के बाद होंगे चुनाव
यदि जुलाई प्रथम सप्ताह तक निकाय चुनाव नहीं हो पाए तो फिर निकाय चुनाव अक्टूबर तक टल सकते हैं। कारण जुलाई-अगस्त के मानसून सीजन में पहाड़ों में चुनाव मुश्किल होंगे। इसके बाद 15 सितंबर तक फिर मंगलौर और बद्रीनाथ विधानसभा के लिए भी उपचुनाव होने हैं। इस कारण निकाय चुनाव की स्थिति अक्तूबर अंत तक ही बन सकती है। तब तक निकाय प्रशासकों के हवाले रह सकते हैं।