दौसा शहर में नीलकंठ की पहाड़ी के पीछे गणेशपुरा रोड तक विलायती बबूल फैल चुका है। सालों पहले यहां दूसरी वनस्पति भी थी, लेकिन मात्र इसका ही राज हो चुका है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जूली फ्लोरा एलीलोपैथिक सबस्टेंस नामक विषैला पदार्थछोड़ता है। इसके चलते आसपास कोई दूसरी वनस्पित नहीं पनप पाती है।
सेवानिवृत्त वन अधिकारी अरुण शर्मा ने बताया कि 1986-87 में अकाल राहत कार्यों के दौरान बबूल का बीज बोया गया था। उस समय वन क्षेत्र में आगे की तरफ या सड़क के समीप यह बोया गया। इसके पीछे उद्देश्य था कि कटाई करने वाले अन्य वनस्पति को नहीं काटकर बबूल को ही काटकर ले जाए। तब रसोई गैस का प्रचलन नहीं था। ग्रामीण इलाकों में लोग पेड़ काटकर ले जाते थे। इस पर रोक लगाने के लिए विलायती बबूल को लगाया। अब कटाई कम हो गईहै और बबूल पैर पसारता ही जा रहा है। उन्होंने बताया कि सर्दी के दिनों में ग्रामीण इलाकों में अवैध रूप से बबूल की बड़ी संख्या में कटाई होती है, क्योंकि जलाने के लिए लकड़ी की जरूरत अधिक पड़ती है। हालांकि एक-दो माह बाद ही यह फिर उग आता है।
विषझाड़ का शिकंजा पूरे राजस्थान पर कसता जा रहा है। यह निकम्मा पौधा प्रकृति को नुकसान तो पहुंचाता ही है। साथ ही अपराध को भी बढ़ावा देता है। कईजगह रास्तों को अवरुद्ध कर रखा है। जलस्तर भी घटा रहा है। इसका कोई लाभ भी प्रकृति को नहीं मिलता। बबूल से हरियाली को बचाने के लिए सरकार को शीघ्र उन्मूलन कार्यक्रम चलाना चाहिए।
विनौड़ गौड़ ‘मधुरÓ, पर्यावरणप्रेमी, दौसा