मिश्रा व उनकी पत्नी रामश्री देवी ने भारत के अलावा कनाड़ा, न्यूजीलैंड, मालदीप, ऑस्ट्रेलिया, केएसए, स्प्रेज, नेपाल, सऊदीअरब एवं पाकिस्तान जैसे देशों के डाक टिकिट तथा भारत के विभिन्न स्टेटों के रेवेन्यू, स्टांप व डाक टिकिट भी संग्रहित किए हैं। ये संग्रहण करके वे वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने के लिए प्रयासरत हैं।
उनकी ख्वाहिश है कि राज्य शासन एवं जिला प्रशासन स्तर पर उनके संग्रहण की प्रदर्शनी लगाई जाए ताकि उसमे इस तरह की ऐतिहासिक वस्तुएं संग्रहित करने वालों की कलाकृतियों को दर्शाया जाए। वर्ष 2023 में प्रशासनिक स्तर पर उन्हें गौरव सम्मान से अलंकृत किया गया था। दरअसल उनके द्वारा संग्रहित वस्तुओं को देखने की ललक बच्चे, बूढ़े तथा युवा वर्ग में भी देखी जा रही है।
उनके इस शौक और जुनून के आगे धन की कमी भी आड़े नहीं आती। पेशे से किसान राधावल्लभ मिश्रा ने मुगल और राजपूत कालीन ऐसी तमाम वस्तुओं को संग्रहित कर रखा है, जिन्हें देखकर लोग चौंक जाते हैं। राधावल्लभ मिश्रा के पास दूसरी सदी से 20वीं सदी तक के सिक्के हैं जिनमें तांबा, चांदी और स्वर्ण से बने अलग-अलग दौर के 200 से अधिक सिक्के हैं। इसमें दूसरी सदी से 10वीं सदी तक के सिक्के भी हैं जिनमें मुहर, अशर्फी, आना, दिरहम एवं भारतीय प्राचीन सिक्के शामिल हैं।
मुगल और राजपूत कालीन (Mughal-Rajput Period) हुक्के, चाकू, पेपरवेट, तस्तरी, कलमी कामदार लोटे, चकरी, कटार, पानदान, तंबाकूदान, संवत 1892 की झांसी राज्य की चपरास, ब्रिटिशकालीन सिगरेट केश, चारपाई के कृलाकृतियुक्त काष्ट के पाए, चतेरई कलायुक्त चकरी भंवरा, 500 साल से अधिक पुरानी कॉपर की खुरपी, झांसी का पेनासोनिक रेलवे टोकन के अलावा 200 से 250 वर्ष पुराना कमर में फेटा, सिर की पगड़ी भी सहेजकर रखी है।
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