छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर गांव में स्थित मामा-भांजा नाम का एक मंदिर स्थित है। इस मंदिर के नाम के पीछे एक रोचक कहानी है। 11वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी साम्राज्य के तात्कालिक राजा बाणासुर ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर को मामा भांजा शिल्पकार ने मिलकर बनाया था। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसे शिल्पकारों ने मात्रा एक ही दिन में बनाया था।
एक ही दिन में बना दिया भव्य मंदिर
दंतेवाड़ा जिले के बारसूर में स्थित मामा-भांजा मंदिर बहुत सुंदर है। इस मंदिर का निर्माण करने के लिए एक ख़ास तरह के बलुई पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। यह मंदिर काफी ऊंचा है। इस मंदिर की दीवारों पर शैल चित्रो उकेरे गए हैं। यह उस जमाने की अद्भुत कलाकारी को दर्शाता है। इस मंदिर के शीर्ष के थोड़े नीचे अगल-बगल में दो शिल्पकार मामा और भांजा की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव,गणेश और नरसिंह की प्रतिमा स्थापित की गई हैं।
शिव और गणेश का मंदिर
यह मंदिर मुख्य रूप से शिव और गणेश का मंदिर है। बताया जाता है कि इस मंदिर के नामकरण के पीछे एक कहानी जुड़ी हुई है। काफी समय पहले यहां राजा बाणासुर राज करते थे। ये राजा परम शिव भक्त हुआ करते थे। शिव के प्रति अपनी सच्ची आस्था स्वरूप और भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने एक नायाब शिव मंदिर निर्माण करवाने का सपना देखा। इस मंदिर का निर्माण महज एक दिन में होना था, ताकि राजा की यश की कीर्ति चारों दिशा में फैले और उनके कुल का नाम हो। उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने राज्य के दो प्रसिद्ध शिल्पकारों को बुलाया।
कहा जाता है कि ये शिल्पकार आम नागरिक नहीं थे, उन्हें देवलोक से भेजा गया था। यहां तक कि कुछ लोग तो उन दोनों शिल्पकारों को देव शिल्पी विश्वकर्मा के वंशज बताते हैं। लेकिन इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है।
शिल्पकारों पर पड़ा मंदिर का नाम
शिल्पकारों को राजा ने आदेश दिया कि एक ही दिन में शिव मंदिर का निर्माण किया जाए. . आदेश मिलने के बाद शिल्पकारों ने अपनी ऐसी कारीगरी दिखाई कि आज के जमाने के सभी लोग दांतों तले ऊँगली दबा लेंगे। उन दोनों शिल्पकारों ने मात्रा एक ही दिन में भव्य मंदिर का निर्माण कर दिया। यह काम उस समय के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था।
उस समय में कोई आज की तरह साधन नहीं थे, फिर भी उनकी कारीगरी बहुत अच्छी थी। शिल्पकारों ने इतनी मोटी-मोटी चट्टानों को ऊंचाई पर कैसा पहुंचाया होगा, कैसे चट्टानों को खोदकर नक्कासी किया होगा, कैसे पत्थरों को जोड़कर भव्य और ऊंचा मंदिर बनाया होगा, यह सोंचने वाली बात है।
काम से खुश होकर राजा ने लिया ये फैसला
जब शिल्पकारों ने मंदिर का निर्माण पूरा कर लिया तो इसके बाद राजा ने इस मंदिर में शिवलिंग और गणेश की प्रतिमा स्थापित की। इसके उपरांत राजा ने उन शिल्पकारों को बुलाया, उनका आभार व्यक्त किया और उनका मेहनताना दिया। उनकी कारीगरी और कम समय में काम पूरा करने की कला को देखकर राजा खुश हो गए। उन्होंने शिल्पकारों से कहा कि आज से इस मंदिर को तुम दोनों मामा-भांजा के नाम से जाना जाएगा। तब से लेकर आज तक उस मंदिर को मामा-जा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
मामा-भांजा एक साथ नहीं कर सकते हैं दर्शन
इस मंदिर के पीछे की एक और ख़ास बात है। कहा जाता है कि इस मंदिर में मामा भांजा एक साथ प्रवेश नहीं कर सकते। यह इसलिए क्योंकि कहा जाता है कि यदि मामा भांजा एक साथ इस मंदिर के दर्शन के लिए जाएंगे तो उनके बीच मतभेद होगा। उनके रिश्तों में भी खटास आएगी।