इस चावल में न्यूट्रीशिंयस अधिक होने से लोगों की खाने में रूचि अधिक है। पतला होने के साथ-साथ सुगंधित भी है। लोक्टीमाछी पर सभी दस्तावेज लगभग पूरे हो चुके हैं। इसके जीआई नंबर के लिए एक माह में केस फाइल कर दिया जाएगा। यह केस दंतेवाड़ा की भूमगादी कंपनी से फाइल करवाया जाएगा। जिला प्रशासन रिसर्च, सर्वे, स्टडी व हिस्टोरिकल एविडेंस व एनालाइसिस कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए पूरे करवा चुके हैं।
जैविक खेती कर रहे किसानों के समूह को भूमगादी कंपनी का नाम दिया गया है। इस समूह में जिले के जैविक खेती से जुड़े किसान सदस्य हैं। इन किसानों के उत्पादों को आदिम ब्रांड कहा जाता है। जिला प्रशासन व इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक लोक्टीमाछी पर जीआई नंबर के लिए इसी कंपनी के जरिए केस फाइल करवा रहे हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि लोक्टीमाछी दक्षिण बस्तर की ही उत्पत्ति है। इसलिए इस वेरायटी पर जीआई टैग मिलना चाहिए।
10 पीपीएम आयरन
18 पीपीएम जिंक
31 पीपीएम मैग्निज
1013 पीपीएम मैग्निशियम
2000 पीपीएम पोटिशियम
108 पीपीएम कैल्शियम बस्तर की मिट्टी व पर्यावरण इसके लिए महत्वपूर्ण है
इंदिरागांधी विश्वविद्यालय रायपुर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दीपक शर्मा ने बताया कि, लोक्टीमाछी चावल की किस्म मूलत: दक्षिण बस्तर से है। यहां की मिट्टी में इसका उत्पादन अधिक और गुणवत्तापूर्ण होता है। बस्तर की मिट्टी व पर्यावरण इसके लिए महत्वपूर्ण है। इसकी उत्पत्ति कटेकल्याण एरिया में ही हुई है। इसके हिस्टोरिकल एविडेंस जुटा लिए गए हैं। भूमगादी संस्था के माध्यम से जीआई टैग के लिए एक माह के भीतर केस फाइल कर दिया जाएगा।