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दमोह

अम्बा मां की आराधना, वंदना का प्रतीक है गुजराती गरबा

गोला के चक्कर लगाते-लगाते ही मां कर देती हैं मन की मुरादें पूरी

दमोहSep 28, 2017 / 03:53 pm

Rajesh Kumar Pandey

The worship of Amba Maa symbol of Vandana is Gujarati Gujarati

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दमोह. गुजरात की संस्कृति मे रचा पका गरबा आज भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व मे अलख जगाए हुए हैं, यह आध्यात्मिक भाव लिए हुए गुजराती लोक नृत्य भी है, नौ रात्रि के अतिरिक्त गुजरात में मांगलिक कार्यक्रम मे जैसे, गृह प्रवेश विवाह, जन्मोत्सव, मां जिनकी मनोकामना पूर्ण करती हैं, वह गरबा जरूर करते है।
यह कहना है कि अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार डॉ. प्रेमलता नीलम का। पत्रिका के एक्सक्लूसिव पार्टनरशिप में नव शक्ति गरबा उत्सव समिति के बैनर तले आयोजित गरबा महोत्सव में हो रही प्रस्तुतियों पर उन्होंने जन समुदाय के लिए गरबा की बारीकियां पत्रिका से साझा कीं। नीलम ने बताया कि प्रमुख रूप से गरबा की मनमोहक प्रस्तुति, दर्शकों को बांधे रहती हंै, इसका कारण है। स्वर, लय, ताल में भक्ति भाव की मुद्राएं, संगीत लहरी के साथ वातावरण को मधुरिम बनाए रखता है, इसमे महिला पुरूष बच्चे, सभी वर्ग के लोग भक्ति रस मे डूबकर गरबा को ऊंचाईयां प्रदान करते हैं, भक्तजन सिर पर सुसज्जित दीप प्रज्ज्वलित घट रख कर यह गीत गाते हुए गरबा खेल रहे हैं। पावा घर रे, महाकाली से कहना म्यारो गरबा खेले रे। इस घट में मां नव दुर्गा शक्ति का वास हो जाता है, तब भक्त यह गरबा गाते हुए गोल-गोल घूमते हंै और गरबा करते हैं घम्मर- घम्मर घूमे गरबो, म्यारो तारो, मां तारो सोना गरबा, रूपाय इढोनी। प्रत्येक प्रांत की अपनी संस्कृति अपनी वेशभूषा होती है, जैसे गरबा की वेशभूषा में पुरूष कुर्ता पायजामा, चूड़ीदार पायजामा, जैकिट गले मे दुपट्टा, महिलाओं, चनिया चन्नी, गुजराती साड़ी मे सीधा पल्ला, करधन, हार, झुमका, कंगन चूड़ी, नथ, बिंदिया, पांव में पायल, जूड़ा चोटी मे बेंड़ा, गरबा नृत्य मे चार चांद लगाते है, बिना रूके लगातार गरबा चलता है, ज्यों-ज्यों रात बीतती है त्यों-त्यों गरबा, उतना ही मोहक होता जाता है, मानो गरबो रमतो जाए, आज मानो गरबो रमतो जाए, पवन झपाटा खाए, माने गरबो रमतो जाए, दो, तीन, पांच, सात ताली मे संगीत, गीत के साथ गरबा आरम्भ होता है, इसमे साल्वा राधा कृष्ण पर केन्द्रित, सनाडा कथात्मक गरबा होता है। देवियों के नाम गीत में होते हैं, जिससे गरबा में मां की आराधना के भाव जागृत होते हैं, सभी गरबा झूम के करते हैं, डांडिया, रास कहलाता है, जो भक्ति रस के साथ मनमोहक, होता है, शरद पूर्णिमा की चांदनी का रस मन को प्रफुल्लित कर देता है, नौ दिन तक गरबा करने के बाद थकान पता नहीं चलती है, यही मां आराध्य शक्ति का प्रभाव है। इसमे कदम ताल का संचालन, हितों पर अंगों की भाव पूर्ण मुद्राएं, ही गरबा की सफलता की पहचान है। आज वर्तमान मे आवश्यकता है। निज संस्कृति को जीवंत बनाए रखने की गरबा के माध्यम से एक प्रदेश की संस्कृति, दूसरे प्रदेशों में सम्मान पा रही है। यह कार्य प्रत्येक शहरों में आरंभ हो चुका है, इस प्रकार की लोक परम्पराओं से संस्कृति से मन को राहत मिलती है, इस मशीनी युग में राष्ट्रीय लोक चेतना को जगाना होगा, गरबा जैसे, परम्परगत कार्यक्रमों से युवा वर्ग ज्यादा सक्रिय हुआ है, गंगा यमुना की धारा की तरह, चारों ओर अबाध गति से प्रवाहित हो रही है। चंदन की तरह खुशबू बिखेर रही है, शारदीय नवरात्रि पर हम सब संकल्प लें, और दानवीवृति का नाश करने वाली मातु भवानी, दुर्गा, माँ काली, कल्याणी, से निवेदन करें कि हे अम्बे मां इतना बल दे, कुरीति को कुचल संकू, हे मां इतना संबल दें, भटके राहगीरों का पथ बदल सकते हैं, हे मां भवानी, इतनी बुद्धि दें, नित तेरा गुण गान कर संकू, जय मातु अम्बे, जय जगदम्बे।

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