प्रतिमा जी को खुदाई कर निकलवाया
कुण्डलपुर जी का अतिशय बहुत निराला और प्राचीन है। श्रीधर केवली की निर्वाण भूमि होना, यह अवगत कराती है कि ईसा से छह शताब्दियों पूर्व भगवान महावीर स्वामी का समवसरण यहां पर आया था और पहली बार प्रतिमा जी के दर्शन भट्टारक सुरेन्द्र कीर्ति जी को पहाड़ पर हुए। उन्होंने प्रतिमा जी को खुदाई कर निकलवाया और प्रभु के सर पर छत की व्यवस्था करवाई, लेकिन कुछ वर्षों पश्चात राजा छत्रसाल जब मुगलों के हाथों राज्य हार कर वन वन भटक रहा था और भटकते भटकते शांति की खोज में कुंडलपुर जी पहुंचा और श्री 1008 आदिनाथ भगवान के चरणों में बड़ेबाबा के मंदिर बनवाने के भाव रख पुन: राज्य विजय को निकला और जीत गया। कालांतर में विक्रम संवत 1757 ई को राजा क्षत्रसाल ने बड़ेबाबा के मंदिर जी का निर्माण कराया और पंचकल्याणक कराया।
ये कथा भी है प्रचलित
बताते हैं कि एक बार पटेरा गांव में एक व्यापारी बंजी करता था। वही प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था, जहां रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर पर ठोकर लगती थी। एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा, लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थंकर मूर्ति है। स्वप्न में उससे मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने के लिए कहा गया, लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। उसने दूसरे दिन वैसा ही किया, बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई। जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्यध्वनियां सुनाई दीं। जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुड़कर देख लिया। और मूर्ति वहीं स्थापित हो गई।
अतिशय की सबसे बड़ी घटना
अतिशय की सबसे बड़ी घटना तो वह थी, जब मूर्ती पूजा विरोधी औरंगजेब अपनी बड़ी भरी सेना लेकर पहाड़ पर चढ़ आया और उसने बड़ेबाबा की प्रतिमा को खंडित करने का असफल प्रयास किया। जैसे ही उसने प्रतिमा जी के दाहिने पैर के अंगूठे पर तलवार का वार किया, पैर के अंगूठे से दूध की धार निकल पड़ी। वह जान बचाकर वहां से जैसे ही भागा। मधुमक्खियों ने उस पर और उसकी सेना पर आक्रमण कर दिया। बड़े बाबा के दाहिने पैर के अंगूठे का निशान और मधुमक्खियों के शांत और व्यवस्थित छत्ते इसी बात का प्रमाण हैं।
प्राचीन मंदिरों का गढ़
कुण्डलपुर जी सिद्ध क्षेत्र बड़े बाबा का अतिशय क्षेत्र प्राचीन मंदिरों का गढ़ है. जहाँ लगभग 2400 वर्ष पुराने श्रीधर केवली के चरण विराजमान हैं। पहाड़ व तलहटी में लगभग 500 वर्ष पूर्व के 6३ जिन मंदिर हैं, जिनमे पाश्र्वनाथ भगवान और चंद्रप्रभु भगवान के दर्शन बहुतायत में मिलते हैं। यहां आस-पास के क्षेत्र में गुप्तकाल की प्रतिमाओं का भी उल्लेख है। इन सबसे ऊपर विराजमान हैं कुंडलपुर के बड़े बाबा श्री 1008 आदिनाथ भगवान लगभग 1500 वर्ष पुराने मंदिर जी एवं सिंहपीठ आसन पर विराजमान हैं।