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दमोह

आचार्य विराग सागर के बारे में जानिए, ऐसा रहा 1963 से 2024 तक का सफर

आचार्य विराग सागर के बारे में जानिए, ऐसा रहा 1963 से 2024 तक का सफर,बुंदेलखंड के प्रथम आचार्य विरागसागर की समाधि, पथरिया में हुआ था जन्म – महाराष्ट्र के जालना में सुबह 2.30 पर ली अंतिम सांस, जिले भर की जैन समाज में शोक का माहौल, चार महीने में समाज ने खोए दो महान संत

दमोहJul 04, 2024 / 08:36 pm

Samved Jain

Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi

Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi

दमोह. राष्ट्रसंत गणाचार्य विरागसागर महाराज की संलेखना समाधि बुध-गुरुवार की मध्यरात्रि 2.30 बजे महाराष्ट्र के जालना में हो गई है। रात से ही यह खबर जैसे ही सोशल मीडिया के माध्यम से आई लोग स्तब्ध रह गए। किसी को भी गुरुवर की समाधि की खबर एक सपना जैसे महसूस हुई, लेकिन सच्चाई यही थी। इस खबर के साथ समूचे बुंदेलखंड और देशभर की जैन समाज में शोक की लहर व्याप्त हो गई। सभी इष्ट भगवान के समक्ष जप करते हुए प्रार्थना में लीन नजर आए।

2024 में जैन श्रमण संस्कृति के दो बड़े संघों के नायक (आचार्यों) की समाधि होने से सकल जैन समाज स्तब्ध है। फरवरी में आचार्य विद्यासागर के बाद अब दूसरे बड़े संघ के आचार्य विराग सागर की समाधि हुई है। गुरुवार को सभी जैन मंदिरों में गुरुवर के लिए प्रार्थना हुई, तो सभी जैन मुनियों ने भी आचार्य विरागसागर के लिए भावना व्यक्त की। कुंडलपुर में विराजमान आचार्य समय सागर ने भी आचार्य विरागसागर को श्रमण संस्कृति की बड़ी क्षति बताया।

1963 में दमोह के पथरिया में हुआ था जन्म

Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi
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आचार्य विराग सागर का जन्म 2 मई 1963 को दमोह जिले के पथरिया में हुआ था। बचपन से ही सूर्य की तरह चमक और बुद्धि के धनि बालक अरविंद (बचपन का नाम) ने पथरिया के ही शासकीय प्राथमिक शाला में पांचवीं तक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद 1974 में 11 वर्ष की आयु में ही उन्होंने वैराग्य का रास्ता धारण किया और पिता कपूर चंद और मां श्यामा देवी जैन के आाशीर्वाद पर वह कटनी शांति निकेतन जैन संस्कृत विद्यालय में पढऩे के लिए चले गए। जहां धार्मिक, शास्त्र और लौकिक शिक्षा से मेट्रिक पास की। इसके बाद वह शास्त्री बन गए और साधु, संतों के साथ रहते हुए अरविंद का का ज्ञान और बढ़ता गया। यही समय था कि उन्होंने जिन शासन में अपना योगदान देने का मन बना लिया था।

17 की उम्र में वैराग्य, 29 में मिला आचार्य पद

Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi
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धर्म की राह पर निकले अरविंद ने फिर घर की ओर नहीं देखा। यही वजह थी 1980 में वह समय आया जब उनकी शिक्षा, त्याग और ज्ञान को गुरु का आशीर्वाद मिला। तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मति सागर ने मप्र के शहडोल जिले के बुढ़ार में अरविंद शास्त्री को 20 फरवरी 1980 को क्षुल्लक दीक्षा दी। तब अरविंद 17 साल के ही थे। साथ ही उन्हें नई पहचान क्षुल्लक पूर्णसागर के रूप में मिली। गुरू से क्षुल्लक दीक्षा के बाद उनकी तपस्या और बढ़ गई। जिसे देख आचार्य विमलसागर महाराज ने 9 दिसंबर 1983 यानि 20 वर्ष की उम्र में उन्हें मुनि दीक्षा दी और यहीं सें उनका नाम मुनि विराग सागर हुआ। विराग सागर को मुनि दीक्षा महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मिली थी। मुनि रहते विरागसागर ने त्याग और तपस्या बढ़ाई। अनेक जगहों पर विहार कर धर्म प्रभावना बढ़ाई। जिसे देख गुरू आचार्य विमलसागर ने 8 नवंबर 1992 को मप्र के छतरपुर जिले के द्रोणागिरी में मुनि विरागसागर को आचार्य पद जैसी बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी। तब उनकी उम्र महज 29 वर्ष ही थी।

बुंदेलखंड के प्रथम आचार्य ऐसे बने गणाचार्य

29 की उम्र में ही आचार्य पद की जिम्मेदारी मिलने के बाद विराग सागर ने जैन संस्कृति की धर्म प्रभावना को ऐसा बढ़ाया कि हर युवा उनसे प्रभावित होने लगा। न सिर्फ बुंदलेखंड, मप्र बल्कि उप्र, विहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रांतों में विहार करते हुए धर्म पताका फहराया। इस दौरान आचार्य विरागसागर ने संघ में 94 मुनियों, 73 आर्यिकाओं, 5 ऐलक, 23 क्षुल्लक, 32 क्षुल्लिका दीक्षाएं देकर युवाओं को मोक्ष मार्ग की और प्रशस्त किया। इस तरह करीब 222 साधु, साध्वियां विराग सागर के बड़े संघ में हैं। इसके अलावा 110 ऐसे वृद्धजनों को दीक्षा देकर संलेखना की ओर ले गए, जिनका जीवन पूरी तरह धर्म में व्यतीत रहा हो। आचार्य विराग सागर ने अपने शिष्यों के ज्ञान की परख करते हुए बीच में ही 9 मुनियों को आचार्य पद दे दिया था। इसीलिए बुंदलेखंड के प्रथम आचार्य विराग सागर को अब गणाचार्य की उपाधि मिल चुकी थी।
Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi
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आचार्य विरागसागर द्वारा किए गए शोध

आचार्य विरागसागर ने 6 से अधिक साहित्य पर शोध किया था। उन्हें राष्ट्रसंत की उपाधि भी थी। शोध में वारसाणुपेक्या पर 1100 पृष्ठीय सर्वोदयी संस्कृत टीका, रयणसार पर 800 पृष्ठीय रत्नत्रयवर्धिनी संस्कृत टीका, लिंग पाहुड़ पर श्रमण प्रबोधनी टीका, शील पाहुड़ पर श्रमण संबोधनी टीका, शास्त्र सार समुच्चय पर चूर्णी सूत्र और अनेक शोधात्मक ,शुद्धोपयोग, सम्यक्दर्शन, आगमचक्खूसाहू आदि, चिन्तनीय बालकोपयोगी कथा अनुवाद गद्य संपादित साहित्य, जीवनी व प्रवचन साहित्य 150 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया।

फलों का था आजीवन त्याग

आचार्य विरागसागर का सभी फल, पपीता, कटहल, कद्दू, तरबूज, भिंडी, खुरबानी, सीताफल, रामफल, अंगीठा, आलूबुखारा, चैरी, शक्करपारा, कुंदरू, स्ट्रॉबेरी आदि का आजीवन त्याग था। इसके अलावा कूलर, पंखा, लेपटाप, मोबाइल, हीटर, नेल कटर और 1985 से थूखने का त्याग था।
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पथरिया में है आचार्यश्री का गृहस्थ जीवन का परिवार

आचार्यश्री विरागसागर के तीन भाई और दो बहन गृहस्थ जीवन में है। गृहस्थ जीवन में आचार्य यानि अरविंद बड़े थे। इसके बाद विजय और सुरेंद्र आते है। नरेंद्र छोटे है, जो अब ब्रह्मचारी है। इसके अलावा बहन मीना और विमला है, जो विवाहित है। मां श्यामा और पिता कपूरचंद भी आचार्य दीक्षा के साथ समाधि ले चुके हैं।
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