1963 में दमोह के पथरिया में हुआ था जन्म
![Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi](https://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2024/07/132.jpg?resize=1024,682)
17 की उम्र में वैराग्य, 29 में मिला आचार्य पद
![Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi](https://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2024/07/13_0f6089.jpg?resize=1024,689)
बुंदेलखंड के प्रथम आचार्य ऐसे बने गणाचार्य
29 की उम्र में ही आचार्य पद की जिम्मेदारी मिलने के बाद विराग सागर ने जैन संस्कृति की धर्म प्रभावना को ऐसा बढ़ाया कि हर युवा उनसे प्रभावित होने लगा। न सिर्फ बुंदलेखंड, मप्र बल्कि उप्र, विहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रांतों में विहार करते हुए धर्म पताका फहराया। इस दौरान आचार्य विरागसागर ने संघ में 94 मुनियों, 73 आर्यिकाओं, 5 ऐलक, 23 क्षुल्लक, 32 क्षुल्लिका दीक्षाएं देकर युवाओं को मोक्ष मार्ग की और प्रशस्त किया। इस तरह करीब 222 साधु, साध्वियां विराग सागर के बड़े संघ में हैं। इसके अलावा 110 ऐसे वृद्धजनों को दीक्षा देकर संलेखना की ओर ले गए, जिनका जीवन पूरी तरह धर्म में व्यतीत रहा हो। आचार्य विराग सागर ने अपने शिष्यों के ज्ञान की परख करते हुए बीच में ही 9 मुनियों को आचार्य पद दे दिया था। इसीलिए बुंदलेखंड के प्रथम आचार्य विराग सागर को अब गणाचार्य की उपाधि मिल चुकी थी।![Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi](https://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2024/07/image_1573142403.jpg?resize=1024,580)
आचार्य विरागसागर द्वारा किए गए शोध
आचार्य विरागसागर ने 6 से अधिक साहित्य पर शोध किया था। उन्हें राष्ट्रसंत की उपाधि भी थी। शोध में वारसाणुपेक्या पर 1100 पृष्ठीय सर्वोदयी संस्कृत टीका, रयणसार पर 800 पृष्ठीय रत्नत्रयवर्धिनी संस्कृत टीका, लिंग पाहुड़ पर श्रमण प्रबोधनी टीका, शील पाहुड़ पर श्रमण संबोधनी टीका, शास्त्र सार समुच्चय पर चूर्णी सूत्र और अनेक शोधात्मक ,शुद्धोपयोग, सम्यक्दर्शन, आगमचक्खूसाहू आदि, चिन्तनीय बालकोपयोगी कथा अनुवाद गद्य संपादित साहित्य, जीवनी व प्रवचन साहित्य 150 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया।फलों का था आजीवन त्याग
आचार्य विरागसागर का सभी फल, पपीता, कटहल, कद्दू, तरबूज, भिंडी, खुरबानी, सीताफल, रामफल, अंगीठा, आलूबुखारा, चैरी, शक्करपारा, कुंदरू, स्ट्रॉबेरी आदि का आजीवन त्याग था। इसके अलावा कूलर, पंखा, लेपटाप, मोबाइल, हीटर, नेल कटर और 1985 से थूखने का त्याग था।![Aacharya Virag Sagar Bio in Hindi](https://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2024/07/Aachraya-Viragsagar-Bio.jpg?resize=1024,580)
पथरिया में है आचार्यश्री का गृहस्थ जीवन का परिवार
आचार्यश्री विरागसागर के तीन भाई और दो बहन गृहस्थ जीवन में है। गृहस्थ जीवन में आचार्य यानि अरविंद बड़े थे। इसके बाद विजय और सुरेंद्र आते है। नरेंद्र छोटे है, जो अब ब्रह्मचारी है। इसके अलावा बहन मीना और विमला है, जो विवाहित है। मां श्यामा और पिता कपूरचंद भी आचार्य दीक्षा के साथ समाधि ले चुके हैं।****