अदालत ने कहा- फैसला नजीर नहीं बन सकता
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने सुनवाई करते हुए कहा, बलात्कार जैसे अपराधों को Cr.P.C. की धारा 482 के तहत रद्द नहीं किया जा सकता है लेकिन हमें इसमें देखना है कि अगर कोई समझौता हो गया है, तो केस का जारी रहना ठीक नहीं है। अदालत ने कहा कि वह महिला के कल्याण और भविष्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती। इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए FIR को रद्द किया जा रहा है। हालांकि इस आदेश को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने की उच्च न्यायालय की शक्ति पर एक मिसाल के रूप में नहीं लिया जाए। अदालत ने कहा कि ये केस इस बात की मिसाल नहीं बन सकता है कि बलात्कार के अपराध को इस आधार पर रद्द कर दिए जाए कि पीड़िता और आरोपी ने समझौता कर लिया है।
महिला ने याचिकाकर्ता के खिलाफ सवाई माधोपुर के महिला पुलिस थाने में आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज कराई थी। जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह 29 साल की है और एक समाचार चैनल में काम करती है। उसने कहा कि वह 2020 में नोएडा में उससे परिचित हुई और उन्होंने अपने मोबाइल नंबरों का आदान-प्रदान किया और दोस्त बन गए। 21 मार्च, 2021 को याचिकाकर्ता ने उससे शादी करने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद दोनों ने यौन संबंध बनाए और वह गर्भवती हो गई। उसने गर्भपात करने के लिए उसे गोलियां दीं और शादी करने से इनकार कर दिया। महिला के केस करने के बाद दोनों में समझौता हुआ और दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद युवक ने हाईकोर्ट में अर्जी देकर FIR रद्द करने की मांग की, जिसे कोर्ट ने मान लिया।