ब्रिटेन से मंगवाई थी पटरियां
क्षेत्र के इतिहास से जुड़े डॉ. केसी डांवर ने बताया कि उस समय गांव देपालसर से बीकानेर तक की 170 किमी दूरी के लिए ब्रिटेन से आई रेल पटरियां बिछाने में दो हजार मजदूरों को सात साल लगे थे। इस पर सवा सौ साल पहले करीब 20 लाख रूपए खर्च हुए थे। रेल लाइन बिछाने का ठेका गांव थेलासर के ठाकुर भूरसिंह व हणुतपुरा के जागीरदार खंगारसिंह को मिला था।
शेखावाटी में व्यापार का था प्रमुख केंद्र
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि यह रेलवे स्टेशन शेखावाटी अंचल में व्यापार का प्रमुख केंद्र था। यहां पर आज के पाकिस्तान, म्यांमार व बांग्लादेश से चीनी, गेंहू, रूई, रेशम व कपड़ा आता था। बाहर से आए माल के लिए देपालसर रेलवे स्टेशन के पास बड़े गोदाम बनाए गए थे। माल को ऊंटों पर लादकर कच्चे रास्तों से बिसाऊ, रामगढ़ व थैलासर सहित अन्य स्थानों पर पहुंचाया जाता था।
साहुकारों ने बदलवा दिया था रेलवे ट्रेक
रेल लाइन को शेखावाटी अंचल से जोडऩे को लेकर मतभेद हुआ था। पहले रेल लाइन रतननगर होकर बिसाऊ – रामगढ़ जानी थी, जिस पर तीस किमी की दूरी कम हो रही थी। लेकिन, देपालसर व थैलासर आदि गांवों के लोगों ने विरोध किया तो रेल लाइन बिछाने का काम रोक दिया गया। बाद में बिसाऊ व रामगढ़ के सेठों ने बीकानेर रियासत को धनराशि सौंपकर रेल लाइन को देपालसर से वाया चूरू होते हुए रामगढ़ व बिसाऊ तक बिछाने की बात कही। बाद में रेलवे की पटरियां बिछाई गई, अब यही मार्ग जयपुर तक है जो कि शेखावाटी को भट्टी इलाके से जोड़ता है।
भित्ति चित्रों में उकेरा रेल का विकास
इलाके के सेठों का व्यापार भी उस वक्त कोलकाता, रंगून, पाकिस्तान व बांगलादेश में था। शेखावाटी में रेल से यहां आने के लिए कोलकाता से ब्रिटिश कम्पनी से रिजर्वेशन होता था। भाप के इंजन से लोग यहां आते थे। जब रेलवे स्टेशन बना तो यहां की हवेलियों में इस नई प्रगति को भित्ति चित्रों के जरिए रेल के इंजन सहित रेलवे की कार्य प्रणाली को दर्शाया गया। आरक्षण की टिकट जोधपुर से डाक द्वारा आती थी व करीब दो से तीन माह पूर्व रिजर्वेशन करवाना पड़ता था। आसपास के इलाकों के गांवों की बारात भी रेलगाड़ी से आती थी। इसके बाद ऊंटों पर सवार होकर बाराती अपने गंतव्य पर पहुंचते थे।
इतना वसूलते थे टैक्स
इलाके के इतिहासविदों के मुताबिक रेलवे स्टेशन को लेकर यहां पर फिरंगी सरकार ने जकात का थाना मुकर्रर किया था। जिसकी सालाना आय उस जमाने में सबसे अधिक दस हजार रूपए थी। यहां आने व भेजने वाले माल पर टैक्स के तौर पर जकात वसूली जाती थी। यहां से चमड़ा व अन्य सामान पाकिस्तान, बांग्लादेश व पंजाब जाता था। रजवाड़ी दौर में आय व व्यापारिक दृष्टि से गांव देपालसर बीकानेर रियासत का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था।
ग्रामीण बोले…
हमारे पुरखों ने जमीन देकर रेलवे स्टेशन की नींव रखवाई थी। रजवाड़ों के दौर में इस रेलवे स्टेशन का बहुत महत्व था। शेखावाटी इलाके में ये व्यापार का प्रमुख केंद्र था। समय ने करवट ली तो इसकी जरूरत कम होने से ये हाशिये पर चला गया। रेल सुविधाएं बढे तो इसका पुराना वैभव लौटे।
लालकंवर, देपालसर
20 हजार लोगों को मिले फायदा
देपालसर रेलवे स्टेशन पर अगर सुविधाओं के विस्तार सहित ट्रेनों का ठहराव हो तो देपालसर सहित गांव मेघसर, श्योपुरा, थैलासर, ढाणी लालसिंहपुरा, बीनासर व श्यामपुरा आदि गांवों की करीब 20 हजार की आबादी को फायदा मिले। यहां के लोग रोजगार के लिए खाड़ी देशों समेत दिल्ली, मुबंई, कोलकाता, गुजरात व दक्षिण भारत के बड़े शहरों में रहते हैं। सेना में भी कई लोग हैं। सुपरफास्ट व वीकली ट्रेनों में सफर के लिए पांच किमी दूर चूरू जाना पड़ता है।
मदनसिंह राजपूत, देपालसर
गांव में गणेशगढी व हनुमानजी के दो प्राचीन मंदिर हैं। साल में यहां पर कई मेले भरते हैं। प्रदेश के कई शहरों के लोग मंदिरों में दर्शनों के लिए साल भर आते हैं। ट्रेनों का यहां पर ठहराव नहीं होने के चलते श्रद्धालुओं को आवागमन में परेशानी होती है।
दीपाराम भेड़ा, देपालसर