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Republic Day 2018 : हिन्दुस्तान के दुश्मनों के लिए मौत का दूसरा नाम थे फौजी नारायण सिंह लांबा

Republic Day 2018 : स्वतंत्रता सेनानी नारायण सिंह लांबा का अंतिम संस्कार बुधवार शाम तारानगर तहसील स्थित पैतृक गांव लांबा की ढाणी में किया।

चूरूJan 25, 2018 / 11:59 am

vishwanath saini

Freedom Fighter Narayan Singh Lamba

Freedom Fighter Narayan Singh Lamba

चूरू. भारत के गणतंत्र दिवस 2018 के अवसर पर हम आपको बता रहे हैं एक फौजी के बारे में, जो दुश्मनों के लिए मौत का दूसरा नाम थे। आजादी की जंग, द्वितीय विश्वयुद्ध, 1965 व 1971 के युद्ध में दुश्मनों का हौसला पस्त करने वाले चूरू के योद्धा स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व सैनिक नारायण सिंह लांबा का मंगलवार रात निधन हो गया। वे 95 वर्ष के थे।
कुछ समय से हृदय की बीमारी से पीडि़त थे, जिनका राजकीय डेडराज भरतिया जिला अस्पताल में उपचार चल रहा था। मंगलवार रात एसएमएस अस्पताल जयपुर में भर्ती करवा दिया था लेकिन रात करीब तीन बजे उनकी सांसे थम गई। उनका अंतिम संस्कार बुधवार शाम तारानगर तहसील स्थित पैतृक गांव लांबा की ढाणी में राजकीय सम्मान से किया।
प्रशासन की तरफ से स्वतंत्रता सेनानी की अंतिम यात्रा के लिए टोल प्लाजा को ग्रीन कॉरीडोर की तर्ज पर शव जाते समय खुलवा दिया गया था। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ईश्वरसिंह लांबा को फोन कर सेनानी नारायण लांबा के निधन पर संवेदना व्यक्त की।

राष्ट्रपति ने किया था सम्मानित


स्वतंत्रता आंदोलन व देश के लिए युद्ध में सराहनीय कार्य करने पर तत्कालीन कार्यवाहक राष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्ला व राष्ट्रपति वीवी गिरी द्वारा उन्हे पुरस्कृत किया गया था। सेना में लगातार 20 वर्ष तक सेवा देने पर सेना मेडल भी दिया गया। इसके अलावा लांबा को दो अक्टूबर 1987 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने ताम्रपत्र प्रदान किया था।

किसानों के लिए लड़ी लड़ाई


सेना में भर्ती होने से पहले लांबा पूर्व केन्द्रीय मंत्री चौधरी कुम्भाराम आर्य के साथ 10 से 15 वर्ष तक किसानों के लिए लड़ाई लड़ी। इसके बाद सेना में भर्ती हो गए। आजादी की लड़ाई के दौरान जिले में सादुलपुर क्षेत्र में पकड़े गए थे और बीकानेर जेल में छह माह बंद रहे।

जानिए लांबा की पारिवारिक स्थिति


नारायण सिंह लांबा का जन्मदिन नौ अगस्त 1927 को लांबा की ढाणी स्थित पिता मोहनराम लांबा व माता मंदो देवी के घर हुआ। लांबा हिन्दी, अंगे्रजी रोमन व ऊर्दू भाषा के जानकार थे। पत्नी अणची देवी का 13 जून 2014 को निधन हो गया था। उनके एक बेटी विद्या देवी व तीन बेटा हैं। बेटा विजयपाल लांबा शारीरिक शिक्षक, ईश्वरसिंह लांबा जिला खेल अधिकारी व छोटे पुत्र निहाल सिंह लांबा शिक्षक हैं। दो पौत्री व चार पौत्र हैं। नारायणसिंह पौधरोपण व सामाजिक कार्यक्रमों में भी रुचि रखते थे। पोते-पोतियों के जन्मदिन पर पौधे लगाते थे।

दिया गार्ड ऑफ ऑनर

अंतिम संस्कार में कलक्टर ललित गुप्ता, एसपी राहुल बारहट, राजगढ़ एएसपी राजेंद्र मीणा, तारानगर एस डीएम इंद्राजसिंह व तहसीलदार राजेंद्र सिंह, तारानगर एसएचओ सुरेशकुमार, भाजपा के महावीर पूनिया आदि ने पुष्प चक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। पुलिस लाइन से दो हैड कांस्टेबल व आठ कांस्टेबलों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया। कोच रमेश पूनिया, झाड़सर छोटा सरपंच जयपाल धुआं भी मौजूद थे। अंतिम यात्रा में पूरा गांव उमड़ पड़ा।
1944 में सेना में हुए भर्ती


लांबा 1944 में सेना में भर्ती हुए। सबसे पहले पंजाब रेजीमेंट में उनकी नियुक्ति हुई। इसके बाद नौ अगस्त 1947 में डिफेंस सिक्योरिटी कोर में शामिल कर लिए गए। सेना में लांस नायक, नायक, हवलादार, नायब सूबेदार व सूबेदार पर सेवा देकर 30 नवंबर 1981 को सेना से रिटायर्ड हुए थे।
इन युद्धों में लिया भाग


सेना में भर्ती होने वाले लांबा 1945 में मार्च से दिसंबर तक द्वितीय विश्वयुद्ध में वर्मा व म्यांमार में लड़ाई लड़ी। 1948 में श्रीनगर हमले में लड़ाई लड़ी। 1962 में गुडग़ांव में नौकरी की। 1965 में गुवाहाटी एयरफोर्स यूनिट में सेवा दी। 1971 में कश्मीर व श्रीनगर में देश की सरहद पर तैनात रहे।

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