कांग्रेस के राहुल संसदीय क्षेत्र की आठ में से छह विधानसभा क्षेत्रों में आगे रहे। सर्वाधिक लीड उनके गृह क्षेत्र सादुलपुर से रही। वैसे तो राहुल ने शुरू से ही लीड बनाकर रखी। जीत में सर्वाधिक योगदान सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र का रहा। यहां से राहुल कस्वा ने 25 हजार 637 मतों से लीड ली। इसके अलावा नोहर विधानसभा क्षेत्र से 17 हजार 314, सरदारशहर से 12 हजार 284, तारानगर से 3432, चूरू विधानसभा क्षेत्र से 16 हजार 952, सुजानगढ़ विधानसभा क्षेत्र से 1790 मतों से भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र झाझड़िया से आगे रहे। वहीं देवेन्द्र झाझड़िया रतनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 1465 और भादरा विधानसभा क्षेत्र में 4483 मतों से राहुल कस्वा से आगे रहे। डाक मतपत्रों की गिनती में भी राहुल कस्वा भाजपा के देवेन्द्र झाझड़िया से 1276 मतों से आगे रहे।
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भाजपा के कद्दावर नेता राठौड़ की प्रतिष्ठा को लगा आघातविधानसभा के बाद लोकसभा के चुनाव में भी कांग्रेस ने यहां मजबूती दिखाई है। लेकिन कांग्रेस की यह मजबूती भाजपा के कद्दावर नेता राजेन्द्र राठौड़ की प्रतिष्ठा को आघात लगाने वाली है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि चूरू जिले की राजनीति में राजेन्द्र राठौड़ और रामसिंह कस्वा का वर्चस्व रहा है। लेकिन गत चुनाव में यह जोड़ी टूटने के बाद जिले की राजनीतिक आबोहवा बदल गई। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन कमजोर रहा। जिले में महज एक और संददीय क्षेत्र में भाजपा केवल दो सीट जीत पाई। केन्द्र और राज्य में सरकार भले ही भाजपा की हो, लेकिन चूरू-शेखावाटी में भाजपा विपक्ष की भूमिका में आ गई।
भाजपा से राजनीति शुरू करन वाले रामसिंह कस्वां 1991 के लोकसभा चुनाव में 168 वोटों ने जीत हासिल कर पहली बार सांसद बने। 1996 और 1998 के चुनाव में वे कांग्रेस के नरेन्द्र बुडानिया से चुनाव हार गए, लेकिन वे राजनीति में सक्रिय रहे। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से चुनाव लड़े रामसिंह कस्वां दूसरी बार सांसद बने और इस चुनाव में नरेन्द्र बुडानियां को चुनाव हराने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा तथा जिले के राजनीति में एक मजबूत नेता बनकर उभरे। 2004 में कांग्रेस के दिग्गज नेता बलराम जाखड़ को चुनाव हराने के बाद रामसिंह का कद ज्यादा बढ़ गया। इस चुनाव तक भाजपा के कद्दावर नेता राजेन्द्र राठौड़ से अच्छा तालमेल रहा, लेकिन इसके बाद दोनों नेताओं की बीच दोनों नेताओं में दूरिया बनने लगी। 2009 के चुनाव तक चूरू संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का भौगिलिक स्वरूप बदल गया और श्रीडूंगरगढ़ व लाडनूं की जगह हनुमानगढ़ जिले के नोहर-भादरा विधानसभा को जोड़ दिया गया। नव स्वरूप में आए निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस ने रफीक मण्डेलिया को टिकट दिया तो भाजपा ने रामसिंह कस्वां को। यह चुनाव जीत कर वे चौथी बार सांसद बने।
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2014 के चुनाव में राहुल को मिला पहली बार टिकटराहुल कस्वां को पहली बार वर्ष 2014 के चुनाव में पार्टी नेतृत्व की ओर से टिकट दिया गया। इस चुनाव में पहले उनके पिता रामसिंह कस्वां ही टिकट के दावेदार थे। राजनीति के जानकार बताते हैं कि भाजपा की नेता वसुंधरा राजे उन्हें टिकट देना चाह रही थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उनके बेटे राहुल को टिकट दी। विरासत में मिली राजनीति के चलते राहुल ने क्षेत्र में पकड़ बनाई। इसके साथ ही यहां की राजनीति में उनका वर्चस्व बढ़ता गया। इस चुनाव में राहुल कस्वां ने मोदी लहर में पहली बार 2,94,739 मतों से चुनाव जीतकर एक कीर्तिमान बनाया। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने उन्हें टिकट दिया। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के रफीक मण्डेलिया को रातीन लाख से अधिक वोटों से चुनाव हराया। हालांकि कांग्रेस से इस बार उनकी जीत अब तक की सबसे छोटी जीत है।
कांग्रेस से टिकट मिलने के बाद लोकसभा चुनाव के प्रचार पर नजर डाली जाए तो सामने आता है कि नामांकन रैली को छोड़कर कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता यहां राहुल के पक्ष में प्रचार करने नहीं आया। राहुल स्वयं ही अपने प्रचार में जुटे रहे। अपने कार्यकाल के काम गिनवाए और टिकट कटने के लिए काका को जिम्मेदार ठहराया। ऐसे में उनके पक्ष में लहर बनती गई। वहीं भाजपा की स्थिति देखें तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देवेन्द्र झाझड़िया के समर्थन में चूरू में सभा की।