उल्लेखनीय है कि राजस्थानी के सशक्तहस्ताक्षर डॉ देव कोठारी ने राजस्थानी भाषा, सााहित्य एवं इतिहास को लेकर व्यापक कार्य किया है। उदयपुर जिले के गोगुंदा में 27 अक्टूबर 1941 को पूनमचंद कोठारी के घर जन्मे डॉ देव वर्तमान में राजस्थान स्टेट हायर एज्यूकेशन कौसिंल,
जयपुर के सदस्य हैं।
ज.रा.ना.रा.वि. विश्वविद्यालय, उदयपुर से प्रोफेसर एवं डायरेक्टर (रिसर्च) पद से सेवानिवृत्त डॉ देव का राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अध्यक्ष के तौर पर किया गया उल्लेखनीय कार्य आज भी आदर के साथ याद किया जाता है। राजस्थानी के अलावा हिंदी व संस्कृत में भी उन्होंने अनेक पुस्तकों का लेखन, संपादन, अनुवाद किया है।
उनकी उल्लेखनीय पुस्तकों में ‘राजस्थानी भाषा और उसकी बोलियां’, ऐतिहासिक राजस्थानी काव्य ‘भीम विलास’, गुमान ग्रंथावली भाग – 1, गुमान ग्रंथावली भाग – 2, . कहवाट विलास, तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान, सिरजण री सीर, चारू वसंता (कन्न? से राजस्थानी में अनुवाद) आदि प्रमुख हैं। इतिहास विषयक उनकी पुस्तकें ‘महाराणा प्रताप और उनका युग’, ‘स्वतंत्रता आंदोलन में मेवा? का योगदान’, ‘राजस्थान में व्यापार और वाणिज्य’, राष्ट्र निर्माण में मेवा? का योगदान’, ‘ राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति’ आदि महत्वपूर्ण हैं।
राजस्थानी साहित्य का इतिहास (वि.स. 1650-1750) एवं एक व्यंग्य संग्रह इन दिनों प्रकाशनाधीन हैं। अखिल भारतीय स्तर की ख्याति प्राप्त एवं बहुचर्चित ‘शोध पत्रिका’ (त्रौमासिक) के 35 वर्षों तक निरन्तर सम्पादन के साथ ही जागती जोत (राजस्थानी मासिक, सन् 2004-06) का भी उन्होंने संपादन किया है। उनके करीब 180 शोध आलेख विभिन्न पत्रा-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।
सैकड़ों गोष्ठियों, सेमीनार, कार्यशालाओं में शिरकत कर चुके डॉ देव को अब तक दर्जनों महत्वपूर्ण पुरस्कार-सम्मान मिल चुके हैं। प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती व अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान रखने वाले डॉ देव प्राचीन शिलालेखों की छापें लेने, शिलालेखों एवं हस्तलिखित ग्रंथों को पढऩे, संपादित करने का ज्ञान रखते हैं तथा आयुर्वेद के शास्त्राीय ग्रंथों, औषधि निर्माण व सामान्य चिकित्सा को लेकर पिछले 30 वर्षों से काम कर रहे हैं।
डॉ देव ने 26 पुरातात्विक महत्व के स्थानों की खोज तथा बालाथल तहसील वल्लभनगर में 1994 से 1999 तक दकन कालेज पूना के डॉ. वी.एन. मिश्र के निर्देशन में डॉ. वी.एस. शिन्दे और डॉ. आर. के. मोहन्ती के साथ उत्खनन कार्य में इन्स्टीट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज, उदयपुर के डॉ. ललित पाण्डे, डॉ. जीवन खरकवाल के साथ संलग्न रह कर साढ़े चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेषों का उद्घाटन किया, जिसमें मृदभाण्ड, औजार, शस्त्रा, नर कंकाल, दुर्ग, कृषक जीवन, अनाज, विभिन्न पशुओं की हड्डियों आदि के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।