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Friendship Day Special: स्वामी विवेकानंद तथा खेतड़ी के महाराजा की अनूठी मित्रता, जिसकी 133 साल बाद भी दी जाती है मिसाल; जानिए क्यों

भारतीय संस्कृति और संस्कारों में आपसी प्रेम भाईचारा मित्रता जैसे उदाहरण सालों बाद भी जिंदा है। यह कहानी है स्वामी विवेकानंद तथा खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह की। जानिए मित्रता दिवस पर स्वामी विवेकानंद तथा महाराजा अजीत सिंह राठौड़ की मित्रता का संदेश…

चूरूAug 04, 2024 / 06:28 pm

Suman Saurabh

Friendship Day Special: The unique friendship between Swami Vivekananda and the Maharaja of Khetri

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सादुलपुर, चूरू। भारतीय संस्कृति और संस्कारों में आपसी प्रेम भाईचारा मित्रता जैसे उदाहरण सालों बाद भी जिंदा है। यह कहानी है स्वामी विवेकानंद तथा खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह की। दोनों का नाम आज भी मित्रता के रूप में सम्मान से लिया जाता है। यूं तो भगवान श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता किसी से छिपी हुई नही है लेकिन स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि वह स्वयं तथा महाराजा ’’अजीत सिंह दो ऐसी आत्माएं है, जो मानव-समाज के कल्याण के लिए तथा एक महान कार्य में आपसी सहयोग करने के लिए पैदा हुए हैं। हम एक दूसरे के सहायक और परि पूरक हैं। खेतड़ी ही था जिसने उनको विवेकानंद का नाम दिया था।

मित्र और गुरु शिष्य थे दोनों

राजा अजीत सिंह स्वामी विवेकानंद के प्रभावशील, तेजस्वी, व्यक्तित्व तथा उनकी ओजस्वी वाणी से मुग्ध होकर दोनों मित्र के साथ – साथ गुरु-शिष्य भी बन गए और आग्रह पूर्वक माउंट आबू से अपने साथ खेतड़ी लेकर आए। खेतड़ी में उनका बड़ा स्वागत हुआ और उनके कहने पर ही खेतड़ी में एक प्रयोगशाला कि स्थापना की गई व महल की छत पर एक सूक्ष्मदर्शी यंत्र लगाया गया। इसमें तारामंडल का अध्ययन राजा को स्वामी कराते थे। दोनों घंटों तक संगीत का अभ्यास करते थे एक वीणा वादन करता था तो दूसरा ठुमरी गाया करता था।

मित्रता के कारण खेतड़ी से अटूट रिश्ता

खेतड़ी आने से पहले स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र था। अपने अल्पजीवन काल में विवेकानंद पांच नामों से जाने जाते थे नरेंद्रनाथ दत्त, कमलेश, सच्चिदानंद, विविदिषानंद और विवेकानंद विवेकानंद नाम खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने दिया था। इसके अलावा स्वामी की भगवावस्त्रों में जो तस्वीर देखते हैं वह पगड़ी व अंगरखा भी खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने भेंट किए थे। विश्व धर्म समेलन में हिस्सा लेने शिकागो जाने के लिए ओरियन्ट कपनी के पैनिनशुना नामक जहाज का टिकट राजा अजीत सिंह ने ही करवाकर दिया था।
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मित्र के भव्य स्वागत में खर्च किया 14 मण तेल

स्वामी विवेकानंद जब 1897 में अंतिम बार खेतड़ी लोटे, तो खेतड़ी आने पर राजा अजीत सिंह ने प्रजा की ओर से 12 दिसबर 1897 के दिन ’’पन्नासर तालाब’’ पर प्रतिभोज देकर खेतड़ी और खेतड़ी के भोपालगढ़ किले को रोशनी से जगमगाकर उनका स्वागत किया और अपनी श्रद्धा भक्ति प्रकट की। उस समय केवल अकेले किले की रोशनी पर 14 मण तेल खर्च हुआ था। स्वामी विवेकानंद इसी श्रद्धा भक्ति से ओत – प्रोत होकर खेतड़ी को अपना दूसरा घर मानते थे।

मित्रता शब्द नहीं…आत्मीय रिश्ता

युवा लेखक व चिन्तक डॉ. जुल्फिकार ने बताया की यह भी राजस्थान की सभ्यता और संस्कृति का ही प्रभाव था कि विवेकानंद ने अपनी पारपरिक बंगाली व परिव्राजक संन्यासी की वेशभूषा के स्थान पर राजस्थान साफा टरबन और चोगा – कमरखी का आकर्षक वेश धारण किया। यह पहनावा स्वामी विवेकानंद की स्थायी पहचान बनी। उन्होंने बताया कि मित्रता कोई शब्द नहीं है बल्कि एक आत्मीय रिश्ता है। जो दुख सुख का साथ निभाना ही मित्रता है। उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद ने स्वयं कहा था कि भारत की उन्नति के लिए जो कुछ थोड़ा बहुत उन्होंने किया है, वह उनसे सभव नहीं था।
Friendship Day Special: Swami Vivedananda's messages on friendship
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