नहीं मिली एलओपी दिसंबर बीतने वाला है। लेकिन अभी पांच में से एक भी मेडिकल कॉलेज को लेटर ऑफ परमिशन (एलओपी) तक नहीं मिला। है। विभाग के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसी तरह से सरकार की धीमी गति चलती रही तो अगले सत्र में भी मान्यता मिलना मुश्किल है।
नहीं आ रहे एसोसिएट प्रोफेसर व रेजिडेंट शैक्षिक स्टाफ के लिए करीब एक साल से भर्ती चल रही है। अब तक 32 शैक्षिक स्टाफ ने ज्वाइनिंग की है। लेकिन एसोसिएट प्रोफेसर के पद काफी रिक्त हैं। 15 एसोसिएट प्रोफेसरों की संविदा पर नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे गए हैं। प्रिंसिपल डॉक्टर वीरबहादुर सिंह ने बताया कि 22 दिसंबर तक संविदा भर्ती के लिए साक्षात्कार लिए जाएंगे। चयन एमसीआई के मापदंड के अनुरूप ही किया जाएगा। चूरू सहित भरतपुर, डूंगरपुर, पाली, व भीलवाड़ा मेडिकल कॉलेज में संविदा भर्ती के आदेश दिए गए हैं।
चूरू में संविदा पर होनी है इनकी भर्ती
पद संख्या
प्रोफेसर 02
एसोसिएट प्रोफेसर 15
सहायक प्रोफेसर 03
वरिष्ठ प्रदर्शक 02
सीनियर रेजिडेंट 13
जूनियर रेजिडेंट 27
एक्सपर्ट व्यू सरकार जिन पांच मेडिकल कॉलेजों को सोसायटी के माध्यम से चला रही है उसमें सुविधाएं कम हैं, काम अधिक है। वेतनमान कम दिए जा रहे हैं, नौकरी की सुरक्षा भी नहीं है। प्रमोशन के दौरान हर पद के लिए साक्षात्कार देने पड़ेगे। इन्ही कारणों से नए मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसर, सहा. प्रोफेसर तथा रेजिडेंट नहीं आ रहे। डॉक्टरों का किसी की शिकायत व बगैर मतलब के दूर-दूर तक तबादले करने के बढ़ते चलन से डाक्टर सरकारी नौकरी में आना कम पसंद कर रहे हैं। स्ट्रक्चर बढिय़ा नहीं होने, मरीजों की भारी भीड़ होने से अपेक्षित क्वालिटी मेंटेन नहीं हो पाती है। इन सभी के कारण सरकारी नौकरियों से डाक्टरों का मन भटक रहा है। यदि सरकार को कॉलेजों को चलाना है तो वेतनमान अधिक करना होगा। अधिक वेतन होगी तो बाहर से भी लोग आ जाएंगे। या सोसायटी की जगह पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में चलाया जाए। चूंकि सोसायटी की नौकरी व वेतनमान की असुरक्षा बनी हुई है। जबकि सरकारी होगी तो नौकरी व वेतनमान की सुरक्षा के साथ अन्य कई प्रकार की सुविधाएं मिलेंगी। इससे सीटे आसानी से भर जाएंगी। अन्यथा सरकार कितनी भी कोशिश कर ले सीटे भरना मुश्किल है।