यहां अटका पेंच
दरअसल, मामला तब फंसा, जब निर्माण कंपनी ने इमारत की छत पर पिलर डालने के लिए काम शुरू किया। इसके तहत जब शुरुआत ही की, तभी उन्हें यह अंदाजा हो गया कि इस बिल्डिंग पर किसी भी तरह का और निर्माण इमारत की नीव और खासतौर से छत झेल नहीं पाएगी। जानकारों के मुताबिक, निर्माण कंपनी ने जब मौका मुआयना किया था और जिस आधार पर डिजाइन बनाया गया था, वह यह मान कर था कि छत की ढलाई आरसीसी या वैसी की किसी दूसरी तकनीक से हुई होगी, लेकिन जब उन्हें काम की शुरुआत में ही पता चल गया कि पूरी इमारत की छत गाटर-पट्टियों पर थमी हुई है, तो कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए।
फिजूलखर्ची पर इस तरह उठे सवाल
जानकारी के मुताबिक, शुरुआत में ही पुरानी बिल्डिंग के ऊपर निर्माण की योजना खारिज हो जाने के बाद भी जिम्मेदारों का ध्यान इस बात पर नहीं गया कि जिस फ्लोर के बनने का प्लान ही खारिज हो गया, उस फ्लोर तक पहुंचाने के लिए बाकायदा एक रैंप का निर्माण कार्य शुरू भी हो चुका है।
शिकायत हुई और रुका रैंप का काम
इसी बीच, स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन के पास इस तरह की शिकायत पहुंची, तो रैंप के निर्माण के औचित्य पर सवाल उठते देख निर्माण कार्य कुछ दिनों के लिए रोक दिया गया। तब तक रैंप में भी लगभग बीस फीसदी काम ही हो पाया था।
इस तरह पहुंचा 15 लाख का फटका
हालांकि, तकरीबन एक-डेढ़ महीने काम रुके रहने के बाद अचानक जयपुर से आए सचिव स्तर के अधिकारी ने स्थानीय जिला व अस्पताल प्रशासन के साथकाम का मुआयना किया। उनके जाते ही एक बार पुन: काम शुरू हो गया। न सिर्फ शुरू हुआ, बल्कि इस बार काम पूर्ण भी हुआ और ठेकेदार को उसका भुगतान भी स्वीकृत हो गया।