फिर संकट में ‘काला सोना
चित्तौडग़ढ़ जिले की व्यावसायिक फसल अफीम मौसम की मार से जूझ रही है। लगातार रोगों के हमले ने अफीम उत्पादकों का दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली हैं।
चित्तौडग़ढ़
चित्तौडग़ढ़ जिले की व्यावसायिक फसल अफीम मौसम की मार से जूझ रही है। लगातार रोगों के हमले ने अफीम उत्पादकों का दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली हैं। मृदुरोमिल से मुकाबला कर रही इस फसल ने किसानों की चिंता बढा दी है। कई जगह से अफीम में काली मस्सी रोग होने की शिकायतें शुरू हो गई है।
फफूंदजनित मृदुरोमिल रोग के बीजाणु जमीन में रहते हैं और बुवाई के बाद ये पौधों पर हमला शुरू कर देते हैं। जिन खेतों में अफीम की बुवाई की जाती है, उनमें गत बार की फसल के रोगग्रस्त अवशेष जमीन में ही रह जाते हैं। अगली बार जब बुवाई की जाती है तो यह रोग फिर फसल पर हमला कर देता है। पिछले एक सप्ताह से तापमान में गिरावट, औंस पडऩे और मौसम में नमी के चलते अफीम की फसल में यह रोग तेजी से फैल रहा है। बड़ीसादड़ी उपखण्ड के सांगरिया, जिया खेड़ी सहित जिले भर में अफीम की फसल में पौधों की पत्तियां पीली पडऩे लगी हैं। कई जगह यह टेढी-मेढी हो गई है और कई जगह अफीम के पौधे बौने हो गए हैं। इनकी पहचान दूर से ही की जा सकती है। कई जगह पौधों के डण्ठल ऐंठ गए हैं। मृदुरोमिल और तना गलन के चलते पौधों की कलियां खिलने में दिक्कतें आ रही हैं। डोडे नहीं बन पा रहे हैं। कई खेतों में तो अफीम के पौधे सूखना शुरू हो गए हैं। पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बों की शिकायत सामने आने लगी है। अफीम काश्तकार देवीलाल, राधेश्याम, साहूराम, जगदीश जाट ने बताया कि रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ फेंकने के बाद भी रोग पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। मौसम की मार से नमी के चलते अफीम के पौधों में काली मस्सी पनप रही है, इससे उत्पादन पर सीधा असर पडऩे की आशंका जताई जा रही है।
क्या कहते हैं अधिकारी
सहायक कृषि निदेशक शंकरलाल जाट ने बताया कि इस रोग का सबसे अच्छा समाधान फसल चक्र अपनाना है। इसके अलावा रेडोमिल एमजेड ०.२ प्रतिशत घोल के तीन छिड़काव ३०, ५० और ७० दिन बाद करके रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
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