नवरात्रि के पवन अवसर पर देवी के कई स्थान देश भर में भक्ति भाव के सागर में गोता लगा रहे हैं। हर जगह की अपनी एक अलग महत्ता है, चाहे वह प्रसिद्द शक्तिपीठों की हो या फिर किन्ही अन्य स्थानों की। इन्ही महत्ताओं और उनकी शक्तियों से परिचित आस्थावानों का सैलाब नवरात्रि में मां के दर्शन पूजन को उमड़ पड़ता है। आज एक ऐसे ही स्थान के बारे में जानिए जहां मां विंध्यवासिनी नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि को आकर भक्तों को दर्शन देती हैं और भक्तों के जीवन का कल्याण होता है। इन सबके बीच सबसे खास और रोचक तथ्य यह कि मां जिस स्थान पर भक्तों को दर्शन के लिए आती हैं वह स्थान खुद उन्हीं (मां विंध्यवासिनी) के द्वारा श्रापित होना माना जाता है और वो भी कोढ़ी होने का श्राप, ये स्थान है एक पहाड़ जिसे कोढ़ी होने का श्राप मिला है (लोकमान्यताओं किवदंतियों के अनुसार) मां विंध्यवासिनी से और पहाड़ की विनती पर दयालु आदि शक्ति ने नवरात्रि की अष्टमी व नवमी तिथि को खुद उपस्थित रहकर भक्तों को दर्शन देने का वरदान दिया।
जाने इस स्थान के बारे में बुन्देलखण्ड के चित्रकूटधाम मण्डल के अंतर्गत बांदा जनपद में स्थित है “खत्री पहाड़”, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह मां विंध्यवासिनी (जो यूपी के मिर्जापुर में विराजित हैं) के श्राप से श्रापित है। पहाड़ को मिला है कोढ़ी होने का श्राप। पूरे बुन्देलखण्ड की आस्था का प्रमुख केंद्रबिंदु है खत्री पहाड़। वर्ष की दोनों नवरात्रियों (चैत्र और शारदीय) की अष्टमी और नवमी तिथि को उमड़ता है भक्तों का सैलाब। विंध्यवासिनी धाम मिर्जापुर की तरह इस स्थान पर भी बच्चों के मुंडन संस्कार का अपना महत्व है और आम दिनों से लेकर नवरात्रि के दिनों में काफी संख्या में दूर दूर से पहुंचे आस्थावान अपने बच्चों का मुंडन संस्कार सम्पन्न करवाते हैं।
ये है मान्यता खत्री पहाड़ के बारे में प्रचलित स्थानीय जनश्रुतियां किवदंती और लोकमान्यताओं के अनुसार मिर्जापुर में विराजित मां विंध्यवासिनी ने सबसे पहले इसी पहाड़ पर निवास करने का निश्चय किया और पहाड़ को उन्होंने आज्ञा दी कि वो उनके लिए स्थान का प्रबन्ध करे लेकिन पहाड़ ने मां का भार सहन करने में असमर्थता जता दी और मां को निवास करने से मना कर दिया। आज्ञा पालन न होने से क्रोध में आईं मां विंध्यवासिनी ने पहाड़ को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। मां के रौद्र रूप व श्राप से भयभीत खत्री पहाड़ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने मां से क्षमा मांगी। याचक के लिए कोमल हृदयी मां ने पहाड़ को वरदान दिया कि हर नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि को मेरा निवास तुम्हारे शिखर पर होगा और इतना कहने के बाद मां विंध्यवासिनी लुप्त हो गईं और मिर्जापुर की विंध्य पर्वत श्रृंखला में जाकर निवास करने लगी। मंदिर से जुड़े पुजारियों में एक रज्जन तिवारी बताते हैं कि ऐसी ही लोकमान्यता किवदन्ती इस स्थान के बारे में प्रचलित है। पुजारी ने बताया कि नवरात्रि की अन्य तिथियों की अपेक्षा अष्टमी और नवमी तिथि को भक्तों की भीड़ बड़ी संख्या में मां के दर्शन को उमड़ती है और खास बात यह कि अष्टमी की मध्यरात्रि को मंदिर की मूर्ति में एक खास चमक रौनक आ जाती है जिससे यह आभास होता है कि मां का आगमन हो गया है।
बहरहाल आस्था की कसौटी सिर्फ आस्था होती है जिसपर विश्वास की नींव टिकी होती है और मां आदिशक्ति के प्रति इसी आस्था और विश्वास के कारण भक्त जीवन की हर मुश्किलों से पार हो जाता है।