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छिंदवाड़ा

साइड इफेक्ट…मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से बोल नहीं पाते पांच साल के बच्चे

हर व्यक्ति का 7-8 घंटे का स्क्रीन समय, बच्चों में भी हो रही मानसिक बीमारियां, जिला अस्पताल में आए 50 से ज्यादा केस

छिंदवाड़ाJan 14, 2025 / 11:37 am

manohar soni

छिंदवाड़ा. मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से समाज में कहीं न कहीं साइड इफेक्ट सामने आ रहा है। आंखों में तनाव, दर्द के साथ ही बच्चों में डिप्रेशन, गुस्सा, चिड़चिड़ापन और डिले-स्पीच जैसी मानसिक बीमारियां बढ़ रही है तो वहीं युवा और बुजुर्गो की दैनिक जीवनशैली भी बिगड़ती जा रही है। जिला अस्पताल के मनोचिकित्सा और स्पीचथेरेपी विभाग में ऐसे केस प्रतिदिन आ रहे हैं,जहां बच्चे और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर असर प्रदर्शित हो रहा है।
छिंदवाड़ा व पांढुर्ना जिले की 23.76 लाख आबादी में इस समय 90 प्रतिशत लोग मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें से 50 फीसदी व्यक्तियों के पास इस समय स्मार्टफोन है, जिसमें सोशल मीडिया समेत अन्य इंटरनेट सुविधाएं उपलब्ध है। इस समय लोग अपने कामकाजी समय में सबसे ज्यादा उपयोग मोबाइल का कर रहे हैं। इनमें परिवार के दो साल से लेकर 18 साल के बच्चे और किशोर वय बालक-बालिकाए है। कुल मिलाकर स्क्रीनिंग समय 7-8 घंटे प्रतिदिन हो रहा है। लगातार मोबाइल स्क्रीन पर रहने से आंखों में तनाव, चिड़चिड़ापन, खामोशी, बैचेनी, तीव्र गुस्सा जैसी मानसिक स्थिति बन रही है। खुद डॉक्टरों ने चेतावनी दी कि मोबाइल स्क्रीनिंग समय में वृद्धि मानवीय जीवन पर खतरा है। जिसके कहीं न कहीं साइड इफेक्ट सामने आ रहे हैं।
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बच्चों को बोलने की तकलीफ तो हकलाना बना स्वभाव
जिला अस्पताल के गेट नं.4 पर बच्चों की मानसिक बीमारियों के लिए स्पीच थेरेपी सेंटर बना है, जहां प्रतिदिन शून्य से पांच वर्ष के बच्चों की चिकित्सा की जा रही है। सबसे ज्यादा केस मोबाइल के उपयोग के साइड इफेक्ट के रूप में सामने आ रहे हैं। चिकित्सक की मानें तो लगातार मोबाइल स्क्रीनिंग टाइम से बच्चों को बोलने की तकलीफ सामने आ रही है। वर्ष 2002 के बाद जन्म लेनेवाले बच्चे ज्यादा इसके शिकार है।
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स्क्रीनिंग टाइम बढऩे से ये आ रही बीमारी
मोबाइल स्क्रीनिंग टाइम बढऩे से बच्चे अपने पैरेंटस् की बात नहीं सुन रहे हैं और न ही उन्हें रिस्पांस दे रहे हैं। बच्चों का गुस्सा बेकाबू है। उनका चिड़चिड़ापन भी सामाजिक समस्या बन गया है। पांच साल के अंदर बच्चों के बोलने में हकलाना, तुतलाना भी चिंता का विषय है। चिकित्सक बताते हैं कि लगातार मोबाइल देखने पर वे सुन सकते हैं लेकिन प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। इससे ये समस्या बढ़ रही है।
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मोबाइल देखने का समय आधा घंटा, दे रहे दो घंटे से ज्यादा

मोबाइल देखने का स्टैंडर्ड समय आधा घंटा है। जबकि आम तौर बच्चे और युवा इसे 2 घंटे से ज्यादा देख रहे हैं। इस समय मोबाइल पर आधारित केस जिला अस्पताल में 50 से ज्यादा आ चुके हैं। इसका इलाज केवल काउंसिलिंग और थेरेपी है। डॉक्टर बच्चों के साथ खेलते हैं, पैरेट्स को सलाह देते हैं, तब बच्चों की मोबाइल की आदत छुटा पाते हैं।
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इनका कहना है….
मोबाइल एडीक्शन से बच्चों में हकलाना, तुतलाना, न बोल पाना, चिड़चिड़ापन, गुस्से में रहना जैसी गंभीर मानसिक बीमारी सामने आ रही है। उनमें सहनशीलता का अभाव है। पैरेंट्स उन्हें लेकर जिला अस्पताल के स्पीच थैरेपी सेंटर ला रहे हैं। अब तक 50 से ज्यादा केस है, जिनमें काउंसलिंग और थैरेपी दी गई है। इस स्थिति में पैरेंट्स को तुरंत ही उनसे संपर्क करना चाहिए। जिससे बच्चों को सामान्य स्थिति में लाया जा सकता है।
-डॉ.अरविंद पाल, ऑडियोलॉजी एवं स्पीचथैरेपिस्ट, जिला अस्पताल।

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