जूनोटिक रोग मुख्य रूप से संक्रमित पशुओं के खून, पेशाब, मल या लार के संपर्क में आने, उनके काटने, दूषित पानी पीने या अधपका मांस खाने से फैलते हैं। बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और कवक इस संक्रमण के मुख्य कारक होते हैं। रेबीज, एंथ्रेक्स, इन्फ्लूएंजा, ब्रुसेलोसिस, तपेदिक, डेंगू और स्वाइन फ्लू जैसे रोग इसके उदाहरण हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि सभी पशु रोग जूनोटिक नहीं होते। जैसे खुरपका-मुंहपका रोग, लंपी स्किन रोग, रानीखेत रोग आदि मवेशियों तक सीमित रहते हैं और इंसानों को प्रभावित नहीं करते। बीमारियों के वाहक
चमगादड़, पक्षी, कुत्ते, बिल्लियां, गाय, भेड़, सुअर, बंदर, चूहे, छछूंदर जूनोटिक रोगों के संभावित वाहक हो सकते हैं। इनके संपर्क में आने से इंसानों में बुखार, थकान, सिरदर्द, उल्टी, दस्त जैसे लक्षण विकसित हो सकते हैं।
- पालतू जानवरों की नियमित सफाई करें। उनके रहने की जगह को साफ रखें।
- पालतू जानवरों को समय-समय पर टीके लगवाएं और उनकी स्वास्थ्य जांच कराएं।
- जानवरों को छूने या संभालने के बाद हाथ धोना न भूलें।
- बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पालतू जानवरों के मल या खरोंच से दूर रखें।
पालतू पशुओं से संबंधित बीमारियों से बचने के लिए जागरूकता और सतर्कता बेहद जरूरी है। पालतू पशुओं की भी नियमित जांच और टीकाकरण कराना आवश्यक है। जानवरों को संभालते समय दस्ताने जरूर पहनें, चाहे वह जीवित हो या मृत। संक्रमित शारीरिक तरल पदार्थ के संपर्क में आने से बचें। हाथों की सफाई को प्राथमिकता दें। बिना पाश्चुरीकृत दूध और उससे बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। कुछ जूनोटिक बीमारियां, जैसे वायरल रक्तस्रावी बुखार (इबोला वायरस) और रेबीज जानलेवा हो सकती हैं। रेबीज के मामले में लक्षण दिखने के बाद कोई इलाज संभव नहीं है, इसलिए समय पर टीकाकरण कराना बेहद जरूरी है। संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने पर मास्क, चश्मा, एप्रन और दस्ताने पहनना अनिवार्य है। पालतू जानवरों की स्वच्छता और स्वास्थ्य पर नियमित ध्यान दें। समय पर टीकाकरण और पशु चिकित्सक से परामर्श से बीमारियों के जोखिम को कम किया जा सकता है।
- डॉ. अंकित मेश्राम, पशु चिकित्सा शल्यज्ञ