हर्रई, बटकाखापा और सुरलाखापा क्षेत्र के गांवों के मजदूर मुख्य रूप से नरसिंहपुर, गाडरवाड़ा, करेली, आमगांव के साथ नागपुर, पुणे और केरल तक काम करने जाते हैं तो वहीं तामिया विकासखण्ड के आदिवासी मजदूर अपनी रोजी-रोटी के लिए पिपरिया, होशंगाबाद, इटारसी और भोपाल पर निर्भर हैं। वहां बड़े पैमाने पर सोयाबीन, तुअर, मक्का समेत अन्य फसलों की कटाई उनसे कराई जाती रही है। सौंसर क्षेत्र में बोरगांव औद्योगिक जोन है तो वहीं पांढुर्ना संतरे की फसल की बड़ी मण्डी है। इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों से आदिवासी मजदूरों का पलायन बड़ी संख्या में होता है। मजदूर परिवार नागपुर और अमरावती जिले में जाते हैं। मुम्बई, दिल्ली समेत अन्य महानगरों में भी यहां के मजदूरों को देखा जा सकता है।
इसके अलावा देश के प्रमुख प्राइवेट कम्पनियों में भी जिले के युवा कार्यरत हैं। इनकी संख्या भोपाल, इंदौर, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद समेत अन्य मेट्रो सिटी में देखी जा सकती है। सरकारी नौकरी में भी लोग प्रदेश के बड़े-छोटे शहरों में काम कर रहे हैं। ये सभी इस समय अपने गृह ग्राम और शहर में दीपावली मनाने उत्सुक है। दीपावली के नजदीक आते ही ये अपने घरों में लौटने लगे हैं। इन्हें बस स्टैण्ड में देखा जा सकता है। इन कर्मचारी और मजदूरों की उपस्थिति दीपावली पर अपने परिवारों के साथ होगी, उनका त्योहार मनाने का उत्साह देखते बनेगा।