भगवान शिव के रुपों को दर्शाता है खजुराहो का विश्वनाथ मंदिर
खजुराहो के पश्चिमी समूह के मंदिरों में विश्वनाथ मंदिर बेहद खास है। महाराज धंगदेव वर्मन द्वारा 1002-1003 ईसवीं में बनवाया गया यह मंदिर पंचायतन आकार में बना है, जिसमें चारों कोनों पर चार मंदिर बीच में स्थित मुख्य मंदिर को घेरे हुए हैं। भगवान शिव के समर्पित इस मंदिर का नामकरण शिव के एक और नाम विश्वनाथ पर किया गया है। मंदिर की लंबाई 89 फीट और चौड़ाई 45 फीट है। गर्भगृह में शिवलिंग के साथ-साथ केंद्र में नंदी पर आरोहित शिव प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर की उत्तरी दिशा में स्थित शेर और दक्षिणी दिशा में स्थित हाथी की प्रतिमाएं काफ़ी सजीव लगती हैं। इनके अलावा एक नंदी की प्रतिमा भगवान की ओर मुंह किए हुए भी मौजूद है। मंदिर के द्वार शाखों पर मिथुन जागृतावस्था में है। इनके जागृतावस्था एवं सुप्तावस्था में कोई अंतर ही नहीं दिखाई देता है। मंडप की दीवार पर लगा अभिलेख चंदेल वंश के महान शासक धंग का है।
बैकुंठ को समर्पित लक्ष्मण मंदिर
खजुराहो शैली का लक्ष्मण मंदिर राजा सशोवर्मन ने 930 से 950 ईसवी में निर्माण कराया था। 98 फीट लंबे और 45फीट चौड़े मंदिर के अधिष्ठान की जगती के चारों कोनों पर चार खूंटरा मंदिर बने हुए हैं। इसके ठीक सामने विष्णु के वाहन गरुड़ के लिए एक मंदिर था। गरुड़ की प्रतिमा अब लुप्त हो गई है। पंचायतन शैली का यह मंदिर विष्णु को समर्पित है। बलुवे पत्थर से निर्मित, मनोहारी और पूर्ण विकसित खजुराहो शैली के मंदिरों में यह प्राचीनतम है। लक्ष्मण मंदिर से ही प्राप्त एक अभिलेख से पता चलता है कि चन्देल वंश की सातवीं पीढ़ी में हुए यशोवर्मण (लक्षवर्मा) ने अपनी मृत्यु से पहले खजुराहो में बैकुंठ विष्णु का एक भव्य मंदिर बनवाया था। यह मंदिर विष्णु के बैकुंठ रूप को समर्पित है, लेकिन नामांकरण मंदिर निर्माता यशोवर्मा के उपनाम लक्षवर्मा के आधार पर हुआ है।
भगवान शिव के नाम कंदर्पी से पड़ा कंदरिया महादेव नाम
कंदरिया महादेव मंदिर शिव मंदिर है। मंदिर का निर्माण 999 ईसवीं में हुआ था। इसकी लंबाई 102 फीट चौड़ाई 66 फीट और ऊंचाई 101 फीट है। भगवान शिव के एक नाम कंदर्पी पर मंदिर का नाम रखा गया था। इसी कंदर्पी से कंडर्पी शब्द का विकास हुआ, जो कालांतर में कंदरिया में परिवर्तित हो गया। इस मंदिर से लगा हुआ जगदंबी मंदिर भी है। कंदरिया मंदिर की मूर्तियों में दो पंक्तियां में हाथियों, घोड़ों, योद्धाओं, शिकारियों, मदारियों, संगीतज्ञों, नर्तकों और भक्तों की मूर्तियां आसीन है। मंदिर की तीन पट्टियों में देवी- देवताओं, सुर सुंदरियों, मिथुनों, व्यालों और नागिनों की मूर्तियां हैं। मंदिर के भीतर दो मकर-तोरण है। अप्सराओं की प्रतिमाएं सुंदरता के साथ अंकित की गई है।
समावेशी संस्कृति समेटे हुए हैं खजुराहो के जैन मंदिर
खजुराहो के दसवी सदी के जैन मंदिर समावेशी संस्कृति को समेटे हुए हैं। जैन मंदिर में वैदिक-पौराणिक परंपरा के देवी-देवताओं को भी स्थान दिया गया है। जो उस समय की समावेशी संस्कृति की पहचान हैं। अशोक वाटिका में सीता बैठी है, उसका भी चित्रण जैन मंदिर में है। राम-सीता और हनुमान की मूर्ति है। सीताहरण का दृश्य भी है। मंदिरों में पर्यावरण प्रेम को भी दर्शाया गया है, मंदिरों में पशु, पक्षी का चित्रण उस समय की इसी संस्कृति का उदाहरण हैं। कुल मिलाकर पर्यावरण, आम जीवन, देव देवताओं का संसार भी है, जो धार्मिक व आध्यत्मिक महत्व को दर्शाता है। मंदिर में पूरा चर-अचर जगत की समावेशी रुप में अभिव्यक्ति है।