scriptझांसी में बने सातवीं पीढ़ी के रेल इंजन, नई तकनीक से ब्रेक लगने पर पैदा हो रही बिजली | Seventh generation rail engine made in Jhansi, electricity is being generated when braking is applied with the help of new technology | Patrika News
छतरपुर

झांसी में बने सातवीं पीढ़ी के रेल इंजन, नई तकनीक से ब्रेक लगने पर पैदा हो रही बिजली

आधुनिक रेल इंजन न सिर्फ बिजली की खपत कम कम कर रहे हैं बल्कि इनमें इस्तेमाल हुई तकनीक की मदद से इंजन के ब्रेक लगने पर बिजली भी पैदा हो रही है, जिसका इस्तेमाल इंजन में दोबारा किया जा रहा है।

छतरपुरNov 16, 2024 / 12:19 pm

Dharmendra Singh

rail engine

सातवीं पीढ़ी के इंजन

छतरपुर. झांसी रेल मंडल में सातवीं पीढी के डब्ल्यूएजी-7 इंजन का इस्तेमाल शुरू हो गया है। यह इंजन भेल के झांसी स्थित कारखाने में बनाए जा रहे हैं। भेल ने रेल मंडल को 25 रेल इंजन मुहैया कराए हैं।। यह आधुनिक रेल इंजन न सिर्फ बिजली की खपत कम कम कर रहे हैं बल्कि इनमें इस्तेमाल हुई तकनीक की मदद से इंजन के ब्रेक लगने पर बिजली भी पैदा हो रही है, जिसका इस्तेमाल इंजन में दोबारा किया जा रहा है।

एक महीने में 6692713 यूनिट बिजली की बचत


झांसी रेल मंडल ने वर्तमान वित्तीय वर्ष 2024-25 के अक्टूबर माह में आधुनिक तकनीक के थ्री फेज लोकोमोटिव (रेल इंजन) के उपयोग से 6692713 यूनिट बिजली की बचत की है, जिससे लगभग रु. 3.74 करोड़ के रेल राजस्व की बचत हुई है। 3 फेज इंजन होने की वजह से इसमें रि-जनरेटिव ब्रेकिंग भी होता है, जिसकी वजह से ब्रेकिंग में लगने वाली उर्जा एकत्रित होकर पुन: इंजन को प्राप्त हो जाती है तथा ऊर्जा की बचत होती है।

थ्री फेज के है नए इंजन, इस तरह काम करेगी तकनीति


रेलवे थ्री फेज इंजनों का इस्तेमाल शुरू कर चुका है। इन्हीं थ्री फेज इंजनों में एक ऐसी व्यवस्था विकसित की गई है जिसमें ब्रेक लगाने पर बिजली भी तैयार हो रही है। रेल अफसरों का कहना है अभी इस्तेमाल होने वाले इंजन डीसी करंट के हैं। अब नए री-डिजाइन होने वाले इंजनों में री-जनरेटिंग ब्रेकिंग सिस्टम इस्तेमाल हो रहा है। इस तकनीक के जरिए ब्रेक लगाने में खर्च होने वाली ऊर्जा बचती है। साथ ही ब्रेक लगाते समय एक जनरेटर चलता है। इसकी मदद से दोबारा बिजली बनकर ग्रिड में चली जाती है। जनसंपर्क अधिकारी मनोज कुमार सिंह का कहना है अभी झांसी मंडल में इन इंजनों का इस्तेमाल आरंभ हुआ है। इस नई तकनीक के इस्तेमाल से रेल संचालन में मदद मिलेगी।

री- जनरेटिव एनर्जी सिस्टम


री-जनरेटिव एनर्जी सिस्टम पर आधारित यह लोको भेल ने प्रयोग के तौर पर बनाया था। भेल अफसरों के मुताबिक डब्ल्यूएजी-7 (5000 हार्स पावर) श्रेणी के यह इंजन परीक्षण में सफल मिले। अब इनका सामान्य प्रयोग शुरू हो गया है। अभी इलेक्ट्रिक लोको डायनेमिक ब्रेकिंग सिस्टम पर काम करते हैं। ब्रेक लगने के दौरान भारी मात्रा में गर्मी पैदा होती है लेकिन, यह बेकार हो जाती है। नए डब्ल्यूएजी-7 ब्रेक के माध्यम से बिजली पैदा करेंगे। इसके साथ ही इनकी एक खूबी यह है कि एयर ब्रेक का इस्तेमाल किए बिना ट्रेन धीमी हो सकेगी। ब्रेक और पहिये भी कम घिसेंगे। ज्यादा मरम्मत नहीं करनी होगी। उपमहाप्रबंधक भेल दिनेश परते ने बताया कि यह सभी इंजन मेक इन इंडिया के तहत बनाए जा रहे हैं। इसके इस्तेमाल से रेलवे के बिजली बिलों में काफी बचत होगी।

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