छतरपुर. जिले का भूजल स्तर नीचे गिरने के साथ ही खतरनाक भी हो गया है। सेन्ट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में फ्लोराइड की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। भू-जल में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई है। विदेश में पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक सामान्य मानी जाती है, जबकि भारत में यह दर 1.0 मिलीग्राम निर्धारित है। हमारे भू जल में फ्लोराइड की मात्रा तय मानक से अधिक होने से भूल पीने के लिहाज से खतरनाक हो गया है।
फ्लोराइड पानी का रंग हल्का पीला
वैसे को पानी में फ्लोराइड की मात्रा की जांच के लिए कई टेस्ट किए जाते हैं, जिन्हें वाटर ट्रीटमेंट प्लांट वाले स्थान से पानी का सैंपल लेकर किया जाता है, हालांकि घर पर भी इसकी पहचान की जा सकती है। इसके लिए पीने वाले पानी को ग्लास में ले, अगर उसका रंग हल्का पीला है तो ये संकेत हैं कि पानी साफ नहीं है। फ्लोराइड युक्त पानी पीने से कब्ज, प्यास न बुझना और पेट में गैस की समस्या हो जाती है. अगर आपको ये सब परेशानी हो रही है तो इसका मतलब ये है कि पानी में फ्लोराइड की मात्रा काफी अधिक है. इसकी जांच के लिए वाटर टेस्टिंग किट भी उपलब्ध है। ग्रामीण इलाकों में पीएचई डिपार्टमेंट से ये किट मिल जाती है.
इन लोगों को अधिक होती है फ्लोरोसिस की बीमारी
डॉ अब्दुल हकीम के अनुसार ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को फ्लोरोसिस बीमारी ज्यादा होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कई गावों में लोग हैंडपंप और कुएं का पानी पीते हैं। ये पानी फिल्टर नहीं होता है. जबकि, शहरी इलाकों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी का टेस्ट होता है और उससे खतरनाक पदार्थ निकाल दिए जाते हैं। शहरी इलाकों में लोगों के घरों में आर ओ भी लगा रहता है, जिससे पानी साफ हो जाता है।
लोग समझते है गठिया की समस्या
डॉ लखन तिवारी का कहना है कि लोगों को फ्लोरोसिस बीमारी के बारे में जानकारी नहीं है। अकसर लोग इस बीमारी के लक्षणों को गठिया की समस्या मान लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। जो लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं उन्हें इस बीमारी के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिए. लोगों को सलाह है कि अगर बिना वजह उनके दांत पीले हो रहे हैं। कब्ज की शिकायत है या फिर हड्डियों में दर्द हो रहा है तो डॉक्टर से सलाह लेकर फ्लोरोसिस का टेस्ट भी जरूर करा लें। जिन इलाकों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है वहां लोगों को डाइट में आंवला, नारंगी और अंगूरों को शामिल करना चाहिए. इससे फ्लोरोसिस की बीमारी से बचाव किया जा सकता है.
फसलों से भी शरीर में पहुंच रहा फ्लोराइड
भूगर्भ के पानी का परीक्षण होने से उसमें जरूरत के हिसाब से दवाएं डालकर मात्रा को लेवल पर लाया जाता है। लेकिन फसलों की सिंचाई के लिए की जानी वाली पंपिंग सेट की बोरिंग में पानी का परीक्षण नहीं किया जाता है। ऐसे में फ्लोराइड फसलों के जरिये लोगों के शरीर में पहुंच रहा है और नुकसान पहुंचा रहा है। पानी में फ्लोराइड की वजह से होने वाली समस्याओं में, बच्चों और बड़ों के दांतों का खराब होना, हड्डियों का खोखला होना शामिल है। इसके असर से हडिडयां टेढ़ी होने लगती हैं। इससे रीढ़ पर भी बुरा असर आता है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि फ्लोराइड धीमे जहर की तरह असर करता है। रोगी रीढ़ टेढ़ी होने की शिकायत लेकर आ रहे हैं।
किट से कर सकते हैं जांच
फ्लोराइड टेस्ट किट से अपने पीने के पानी का परीक्षण करने से आपके फ्लोराइड स्तर की निगरानी करने में मदद मिलती है। आप अपने पीने के पानी में कुछ सेकंड के लिए टेस्ट स्ट्रिप डुबोकर अपने पानी का परीक्षण कर सकते हैं। पानी से निकालें और 60 सेकंड तक प्रतीक्षा करें और पैकेजिंग के पीछे दिए गए टेस्ट चार्ट से तुलना करें ।
नल जल परियोजना के सहारे प्रशासन
फ्लोराइड की समस्या से लोगों को बचाने के लिए प्रशासन नलजल परियोजनाओं पर काम कर रहा है। ताकि भूजल के बजाए लोग ट्रीटमेंट प्लांट से सप्लाई होने वाले पानी का इस्तेमाल करें। जिससे फ्लोराइड व अन्य तत्वों की अधिकता से होने वाले रोगों से निजात मिल जाए।
इनका कहना है
भूजल का इस्तेमाल सीधे नहीं करना चाहिए। पेज जल परियोजनाओं का पानी बेहतर है। पानी के सैंपल लेकर हम जांच कराते हैं। लोगों को अलर्ट भी करते हैं। पानी की जांच के लिए लोग हमारी लैब भी आ सकते हैं।
संजय कुमरे, ईई. पीएचई