सर्दियों में यहां देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या भी अच्छी खासी हो जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि चंदेल राजाओं द्वारा बसाए गए इस नगर के मंदिरों की क्या विशेषता है? यहां की मूर्तियों को अब तक कामकला का ही नमूना माना जाता है, पर इन मूर्तियों में कई अदृश्य संदेश छुपे हुए हैं। आइए उन्हीं में से एक शार्दूल नामक जानवर के बारे में हम आपको बताते हैं, जिसकी मूर्ति प्रसिद्ध कंदरिया देव मंदिर के चारों ओर बनी हुई है। खजुराहो में एकमात्र सूर्य मंदिर भी है, जिसकी ज्यादातर लोगों को जानकारी ही नहीं है।
साथ ही यहां ऐसी प्रतिमाओं की तो कमी ही नहीं है, जिनमें काम क्रिया को दर्शाया गया है, इसमें संभोग के प्रथम स्तर से लेकर चरम सीमा तक को बताया गया है।
शार्दुल का हर पल रहा था पहरा
खजुराहो में कंदरिया देव मंदिर के चबूतरे के उत्तर में भगवान विष्णु को समर्पित जगदम्बा देवी का मंदिर है। ज्ञात दस्तावेजों के मुताबिक कहा जाता है कि इसका निर्माण 1000 से 1025 ईसवीं के बीच किया गया था। यह मंदिर शार्दुलों के काल्पनिक चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शार्दुल वह पशु था, जिसका शरीर शेर का और सिर तोते, हाथी या वराह का होता था। यह बेहद खूंखार हुआ करता था। मंदिर के बाहर इसका हर पल पहरा रहता था।
सूर्य मंदिर भी है खजुराहो में
खजुराहो में चन्द्रगुप्त नाम का सूर्य मंदिर भी है। चन्द्रगुप्त मंदिर एक ही चबूतरे पर स्थित चौथा मंदिर है। कहा जाता है कि विद्याधर के काल में इस मंदिर का निर्माणह हुआ था। इसमें भगवान सूर्य की सात फीट ऊंची प्रतिमा कवच धारण किए हुए है। भगवान सूर्य सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं। मंदिर की अन्य विशेषता यह है कि इसमें एक मूर्तिकार को काम करते हुए कुर्सी पर बैठा दिखाया गया है।
इस स्थान को यूनेस्को ने 1986 में विश्व विरासत की सूची में शामिल भी किया है। इसका मतलब यह हुआ कि अब सारा विश्व इसकी मरम्मत और देखभाल के लिए उत्तरदायी होगा।