Mahindra XUV300 को टक्कर देगी Hyundai की ये कार, टेस्टिंग के दौरान हुई स्पॉट
हमारे देश में आज भी सस्ती और ज्यादा माइलेज वाली कारों को लोग ज्यादा तवज्जो देते हैं यही वजह है कि आज भी हमारे देश में 0-1 की रेटिंग वाली कारों की बिक्री धड़ल्ले से होती है। कार का माइलेज ज्यादा करने के लिए कार निर्माता कंपनियां कार का वजन कम रखती हैं। इसके लिए कार बनाते वक्त कारों में फाइबर मटेरियल का इस्तेमाल अधिक किया जाता है।
ग्लोबल एनकैप के चेयरमैन मैक्स मोसले का कहना है कि फिलहाल भारत छोटी कारों की बिक्री का बड़ा बाजार बन चुका है। लेकिन सुरक्षा मानकों के लिहाज से ये आज भी यूरोप और उत्तरी अमेरिका से करीब 20 साल पीछे है।
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क्रैश टेस्ट से पता चलता है कितनी मजबूत है कार-
ड्राइवर, पैसेंजर से लेकर पैदल यात्रियों के लिए कार कितनी सेफ है ये क्रैश टेस्ट से पता किया जाता है । पैसेंजर कारों से लेकर SUV तक सभी कारों को क्रैश टेस्ट के माध्यम से चेक किया जाता है। जिसके तहत क्रैश लैब में कारों को अलग-अलग एंगल से क्रैश किया जाता है। ताकि टक्कर से जुड़े सभी आंकड़े रिकॉर्ड किए जा सकें। आज दुनियाभर में इस रेटिंग को आधिकारिक तौर कारों की सुरक्षा का मानक माना जाता है।
इस तरह होता है क्रैश टेस्ट-
आपको मालूम हो कि भले ही नेक्सॉन को सबसे सुरक्षित कार का दर्जा मिला हो लेकिन भारत में कार बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि क्रैश टेस्ट भारत की परिस्थिति के हिसाब से नहीं होते इसीलिए यहां की कारें फेल होती है।