एसएमई चैंबर ऑफ इंडिया और स्टार्टअप काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष चंद्रकांत सालुंक ने फाइनेंषयल एक्सप्रेस को बताया कि व्यावसायिक विकास के लिए और एमएसएमई को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को वर्तमान में अधिकांश व्यावसायिक सेवाओं पर जीएसटी दर 18 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करनी चाहिए। बता दें कि कानूनी पेशेवरों, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, आर्किटेक्ट्स, कोरियर सर्विसेज, मैनेजमेंट कंसल्टिंग और एचआर, मार्केटिंग, सप्लाई चेन मैनेजमेंट, होस्टिंग और आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोविजनिंग, मेंटेनेंस, रिपेयर और इंस्टॉलेशन सर्विसेज आदि सेवाओं पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है।
बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी आगामी बजट में एमएसएमई के लिए विशेष प्रावधान करने का संकेत दे चुकी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार ने कोरोना काल में काफी समझदारी से वित्तीय प्रबंधन किया और खर्च को निश्चित सीमा तक ही बढ़ाया गया। इसलिए बजट में एमएसएमई के लिए नए प्रावधान की पूरी गुंजाइश है।
एक पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले बजट में केंद्र सरकार एमएसएमई से जुड़े एनपीए क्लासीफिकेशन पीरियड को 90 दिन से बढ़ाकर 120-180 दिन कर सकती है। महामारी से जूझ रहे छोटे और मझोले कारोबारियों को राहत देने के लिए सरकार बजट में इन नियमों में ढील का ऐलान कर सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार के बजट में नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स से जुड़े नियमों में राहत संभव है। बता दें कि वर्तमान में किसी भी लोन को उस समय नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स घोषित किया जाता है जब उस लोन का ब्याज या मूल राशि की किश्त 90 दिन के बाद भी जमा नहीं होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार बजट में कोलेट्रल फ्री लोन की राशि को सरकार के द्वारा बढ़ाया जाना चाहिए। सूक्ष्म इकाइयों के लिए 5 करोड़ रुपये तक बढ़ाया जाना चाहिए, छोटे व्यवसायों के लिए 15 करोड़ रुपये, और मध्यम व्यवसायों के लिए 35 करोड़ रु तक। इससे बैंकों के पास उपलब्ध धन का बेहतर उपयोग होगा और जरूरतमंद कारोबारियों को फायदा होगा।