– मनेगा शताब्दी महोत्सव- १२०० वर्षप्राचीन इतिहास रहा – कल से महोत्सव शुरू
बुरहानपुर•Feb 25, 2020 / 12:08 pm•
ranjeet pardeshi
1200 years old history of Shri Jain Shwetambar Shantinath Temple
बुरहानपुर. श्री जैन श्वेतांबर शांतिनाथ मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के 100 वर्षपूर्ण होने पर शताब्दी महोत्सव का आयोजन बुधवार से शुरू हो रहा है। इसके लिए ाव्य तैयार की गई है। इस महोत्सव के लिए ७०० किमी पैदल यात्रा कर जैन मुनि भी आ चुके हैं, जिनके रोज प्रवचन चल रहे हैं। तिलक चौराहा स्थित जैन मंदिर पर आकर्ष रंगरोगन कर विद्युत सज्जा की गई है।
ंमंदिर ट्रस्टी मेहूल जैन ने बताया कि श्री जैन श्वेतांबर शांतिनाथ मंदिर को 100 साल पूर्ण होने पर महोत्सव मनाया जाएगा। 26 से ६ मर्चतक विभिन्न कार्यक्रम होंगे। इस कार्य के लिए जैन समाज के आचार्य भगवंत राजचंद्र सुरीश्वर महाराज साहेब पालीताणा गुजरात से 700 किलोमीटर पैदल विहार कर बुरहानपुर पधार चुके हैं। विभिन्न प्रकार के पूजन एवं रोज विशेष प्रकार की सजावट के साथ मंदिर में आरती गीत संगीत भजन गीत का कार्यक्रम रहेगा। 4 मार्च को भव्य रथ यात्रा जैन मंदिर तिलक चौराहा से निकलेगी जो शहर के विभिन्न मुय मार्गों से भ्रमण कर श्रीजी, भगवान के दर्शन करवाएगी। श्रीजी चांदी के रथ में विराजमान होंगे। बड़ी संया में भक्तजन आएंगे और इसका लाभ लेंगे। 5 मार्च को ध्वजारोहण किया जाएगा।
ऐसा हैमंदिर का इतिहास
ट्रस्टी मेहूल जैन ने बताया कि जैन मंदिर का इतिहास १२०० वर्षसे भी अधिक प्राचीन है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण में में मिलता है। मुगल शसन काल में अनेक बादशाह, राजा, महाराजा इस नगर में शासन कर चुके हैं। जैसी की सम्राट अकबर, औरंगजेब, शिवाजी महाराज, फारुकी वंश का ७०० वर्ष शासन रहा है। यहां अनेक ऐतिहासिक इमारते जीर्ण अवस्था में आज भी उनके अतित का गौरवशाली बखान कर रही है। शहर में जैन समाज का भी गौरव पूर्णइतिहास रहा है। वर्तमान में श्वेतांबर और दिगंबर मंदिर में ४०० से १२०० वर्षपुरातन प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमाओं की पुरातनता एवं भवय्ता देाते ही बनती है। लगभग २०० वर्षपूर्व यहां श्वेतांबर जैन के हजारों घर एवं हजारों की संया में बस्ती थी। उस समय यहां पर अनेक जैन मंदिर व सैकड़ों प्रतिमा विराजीत थ्ी। इस बात का प्रमाणित उल्लेख जब से मिलता है तब यहां श्वेतांबर जैनों के १८ भव्य जैन मंदिर कास्टकी अधिकता थी। इनमें सैकड़ों छोटी बड़ी प्रतिमाएं स्थापित थीं। कालांतर में जैनों की संया तात्कालीक कारणों से कम होती गई एवं संवत १९०० नगर में भयंकर अग्निकांड हुआ उसमें अधिकांश मंदिर पुर्णत जल गए एवं कुछअत्यंत क्षतिग्रस्त हो गए। उस के बाद संवत १९५६ के लगभग यहां नौ जिन मंदिर के प्रमाण है। श्री विजय लक्ष्मीसूरीजी के स्नवन में यहां स्थित नौ जिन मंदिरों का उल्लेख है। कालांतर में जैनों की बसाहट बहुत ही कम हो गई तथा मंदिरों के रखरखाव बगैर कार्यों में क्षीणता शिथिलता आ गई। इस कारण यहां के श्री संघ ने मंदिरों की संया कम करने का निर्णय लिया एवं यहां की जिन प्रतिमाजी विभिन्न स्थानों पर भेजी गई। (जैसे पालीताणा, मंबई, नेर, भांडक, कच्छ आदि है।) ९ भव्य जिन मंदिरों के मूलनायकजी की प्रतिमाएं वर्तमान में स्थित एक जिन मंदिर में प्रतिष्ठित है। सभी प्रतिमाएं भव्य चमत्कारीक एवं मनोहरणी है।
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