बूंदी शहर की ऐतिहासिक नवल सागर और जैतसागर झील संरक्षण के अभाव में धीरे-धीरे अस्तित्व खोती जा रही है।
बूंदी•May 25, 2019 / 12:33 pm•
पंकज जोशी
सरंक्षण के अभाव में अस्तित्व खोती ऐतिहासिक झीलें, जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान
बूंदी. बूंदी शहर की ऐतिहासिक नवल सागर और जैतसागर झील संरक्षण के अभाव में धीरे-धीरे अस्तित्व खोती जा रही है। जिम्मेदारों के इस ओर ध्यान नहीं देने से दोनों ही झीलें मलबे में तब्दील होने लगी है। जबकि दोनों ही झीलें यहां जलस्तर को बनाए रखने के साथ-साथ शहर की सुंदरता को भी चार चांद लगाती थी। दोनों ही झीलों का अपना इतिहास है। यदि ऐसे ही हाल रहे तो वह दिन दूर नहीं जब इनकी सुंदरता पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी। लबालब पानी से भरी रहने वाली जैतसागर झील अब धीरे-धीरे कमल जड़ों से अट गई है। नवलसागर में लोगों ने आस-पास के नालों का रुख मोड़ दिया है, जिससे अब इसमें सिर्फ नालियों का गंदा पानी भरा रहने लगा है।
नवल सागर झील
यह झील बहुत प्राचीन है। राव राजा भोज (1585-1608) ने इसे गहरा कराकर तथा पाल को सुदृढ़ करवाया था। इस पर मोती महल (रावला) का निर्माण करावाया था, बाद में रावराजा छत्रसाल (1631-58), राव राजा उम्मेद सिंह (1741-69) ने महलों तथा पाल को विशाल बनवाया था। अजीत सिंह (1770-73) ने पाल पर ‘राम बाग’ तथा झील के अंदर विशाल शिव मंदिर तथा छतरी का निर्माण करवाया।
उपेक्षा का शिकार
शहर के बालचंद पाड़ा में नवल सागर झील है। पर्याप्त बरसात नहीं होने और आवक के रास्ते अवरुद्ध करने से अब झील नहीं भरती। क्षेत्र के युवा विशाल शर्मा बताते हैं कि गतवर्ष क्षेत्र के युवाओं ने झील में साफ-सफाई की थी। तब नगर परिषद से गवघाट पर दरवाजा लगाकर आवरा पशुओं को तालाब में जाने से रोकने की मांग की थी।
बजट मिले तो सुधरे हाल
राज्य सरकार ने दोनों ही झीलों की दशा सुधारने के वादे किए, लेकिन यह वादे पूरे नहीं हो रहे। जबकि जानकारों का कहना है कि झीलों के वर्षभर भरे रहने और इनमें साफ-सफाई होने से यहां के पर्यटन व्यवसाय को भी लाभ मिलेगा।
झीलों की साफ-सफाई को लेकर जल्द कोई योजना तैयार की जाएगी। जिससे इनकी सुंदरता बनी रहे।
अरुणेश शर्मा, सहायक अभियंता, नगर परिषद बूंदी
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