सरोज खान का जन्म 22 नवंबर 1948 को किशनचंद सद्धू सिंह और नोनी सद्धू सिंह के घर हुआ था। जन्म होने के बाद सरोज का परिवार विभाजन के बाद भारत आ गया था। उन्होंने चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर अपने करियर की शुरुआत तीन सील की उम्र में की थी। पहली बार वो ‘नजराना’ फिल्म में ‘श्यामा’ के रूप में नजर आई थीं। इसके बाद 1950 के दशक में वो बैकग्राउंड डासंर का काम करती थी। 13 साल की उम्र में उनकी शादी पहले से शादीशुदा बी सोहनलाल से हो गई। बी सोहनलाल सरोज खान से तकरीबन 30 साल बड़े थे। सरोज खान ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘मैं उन दिनों स्कूल में पढ़ती थी तभी एक दिन मेरे डांस मास्टर सोहनलाल ने गले में काला धागा बांध दिया था और मेरे शादी हो गई थी।’
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सरोज खान ने जब पहले बेटे को जन्म दिया तब उन्हें अपने पति की पहली शादी के बारे में पता चला। 1965 में उनकी दूसरे बच्चे का जन्म हुआ, जो 8 महीनों बाद ही गुजर गया। जब सोहनलाल ने सरोज के दोनों बच्चों को अपना नाम देने से इनकार किया तब दोनों की राहें अलग हो गईं। दोनों की शादी महज 4 साल ही चली।
उन्होंने अपने पती से डांस सिखा था, जिसके बाद वो खुद कोरियोग्राफर बनने की राह पर चल पड़ीं। पहले उन्होंने बतौर असिस्टेंट कोरियोग्राफर के रुप में काम किया। मगर 1974 में आई फिल्म ‘गीता मेरा नाम’ से वो स्वतंत्र कोरियोग्राफर बन गईं। सरोज ने 200 से ज्यादा फिल्मों के लिए कोरियोग्राफी की है। उन्हें ‘द मदर ऑफ कोरियोग्राफर इन इंडिया’ तमगा भी मिल चुका है।
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इस बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी होगी की सरोज खान ने मुस्लिम धर्म को अपनाया था। मगर इसके पीछे कारण क्या है ये हम आपको बताने जा रहे हैं। एक पाकिस्तानी चैनल को दिए गए अपने इंटरव्यू के दौरान सरोज खान ने अपने जीवन से जुड़ी धर्म परिवर्तन की जानकारी देते हुए बताया कि शादी से पहले वो एक हिंदु लड़की थी। उनका पूरा नाम सरोज किशन चंद साधू सिंह नागपाल था। वो एक पंजाबी हिंदी परिवार से बिलोंग करती थीं। जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ था उस समय वो भारत आ गए थे और उसके बाद उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन किया था।
सरोज खान ने कहा कि उन्होंने जरूर शादी करने के बाद अपना धर्म बदला था, मगर उन्होंने इस बात का भी खंडन किया की उन्होंने अपने पति के वजह से नहीं अपनी मर्जी से ऐसा किया था। उन्होंने किसी के दबाव में आकर मुस्लिम धर्म नहीं अपनाया है। इंटरव्यू के दौरान उन्होंने खुलासा किया था कि उन्होंने इस्लाम धर्म से जुड़े बच्चों को तालीम करते हुए देखा और अपने धर्म के प्रति लगाव को देखते हुए उन्होंने इस्लाम को अपनाने का मन बनाया। सिर्फ इतना ही नहीं सरोज खान ने ये भी बताया था कि उन्हें अक्सर सपने आया करते थे जिसमें एक लड़की उन्हें अपनी मां बताती थी। वो उन्हें अक्सर मस्जिद के अंदर से पुकारा करती थी। ऐसी घटना उनके साथ बार-बार होती जिसके बाद उन्होंने मुस्लिम धर्म अपनाने का मन बना लिया और बाद में उन्होंने इस्लाम धर्म को कबूल कर लिया।