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चार बार रिजेक्ट होने के बाद मनोज वाजपेयी ने की थी सुसाइड की कोशिश, इस फिल्म ने बदली किस्मत

मनोज बाजपेयी उन कालाकारों में से हैं जो छोटी सी जगह से उठकर आए और अपनी काबिलियत के दम पर बॉलीवुड में जगह बनाई। वो अपनी दमदार एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं। वह बिहार के नेपाल सीमा से सटे एक छोटे से गांव से आते हैं। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।

Nov 17, 2021 / 04:19 pm

Satyam Singhai

when manoj bajpai attempt to suicide after rejection

चार बार रिजेक्ट होने के बाद मनोज वाजपेयी ने की थी सुसाइड की कोशिश, इस फिल्म ने बदली किस्मत

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कुछ चुनिंदा एक्टर्स ऐसे हैं, जो अपने एक्टिंग से जादूगरी जगाना जानते हैं और उनमें से एक हैं अभिनेता मनोज बाजपेयी है। मनोज बाजपेयी ने थिएटर से टीवी और टीवी से फिल्मों तक का बड़ा लंबा सफर तय किया है। अपने रोल के प्रति उनकी खास अप्रोच उनके किरदारों को यादगार बना देती है।
मनोज बाजपेयी का जन्म बिहार के चंपारण के पास के एक छोटे से गांव में हुआ था। वो एक किसान परिवार में पैदा हुए जहां उनके पिता किसानी करते थे और मां घर संभालती थी। वो पांच भाई- बहनों में दूसरे नंबर पर हैं जब मनोज एनएसडी के बाद दिल्ली में काम के लिए लगातार स्ट्रगल कर रहे थे, तब वे अपनी बहन को दो रुपये का सिक्का देकर बस में बिठा देते थे और खुद पैदल अपने थिएटर ग्रुप तक जाते थे।
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लेकिन नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक का सफर मनोज बाजपेयी के लिए आसान नहीं रहा था। दरअसल एनएसडी में उन दिनों एडमिशन के लिए दो से तीन चरणों की प्रक्रिया से गुजरना होता था। मनोज बाजपेयी इस प्रक्रिया से पांच बार गुजरे।
पहले चार प्रयासों में उन्हें इंटरव्यू के बाद एडमिशन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। लगातार चार बार रिजेक्ट होने के बाद अपने एक्टिंग के सपने को टूटता देख मनोज बाजपेयी ने सुसाइड करने का मन बना लिया था। एक बार तो उन्होनें सुसाइड का प्रयास कर चुके थे।
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लेकिन इसके बाद उनके दोस्तों और करीबियों ने उन्हें समझाया। दोस्तों के समझाने के बाद वे नुक्कड़-नाटक में एक्टिंग करते रहे। उन्होंने नुक्कड़ नाटकों के साथ थिएटर भी करना शुरू कर दिया। उन्होने एक मिनट की फिल्म ‘द्रोहकाल'(1994) से बतौर एक्टर डेब्यू किया।
लेकिन इस फिल्म से उन्हें खास पहचान नहीं मिली। 1998 में रामगोपाल वर्मा ने उन्हें फिल्म सत्या में भीकू म्हात्रे के किरदार के लिए चुना। पहले मनोज इस फिल्म में बतौर हीरो चुना गया था। बाद में रामगोपाल वर्मा को लगा कि इस कहानी में हीरो से ज्यादा विलेन का रोल महत्वपूर्ण था।
इसके बाद रामगोपाल वर्मा ने मनोज को भीकू म्हात्रे का किरदार निभाने को कहा। मनोज बाजपेयी इस किरदार के लिए मान गए। रिलीज के बाद फिल्म को दर्शकों का बेहद प्यार मिला और मनोज बाजपेयी भीकू म्हात्रे के रूप में मशहूर हो गये। सत्या में बेहतरीन अभिनय के लिए मनोज को पहला नेशनल अवार्ड मिला।

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