‘कालीचरण’ से बने निर्देशक
निर्देशक के रूप मे उन्होंने अपने कॅरियर की शुरूआत वर्ष 1976 में आई फिल्म ‘कालीचरण’ से की। इसमें शत्रुघ्न सिन्हा दोहरी भूमिका में थे। फिल्म सुपरहिट साबित हुई। वर्ष 1978 में सुभाष घई ने फिर से शत्रुघ्न सिन्हा को लेकर ‘विश्वनाथ’ बनाई। इसमें शॉटगन का संवाद ‘जली को आग कहते है बुझी को राख कहते हैं, जिस राख से बारूद बने उसे विश्वनाथ कहते है’ दर्शकों के बीच आज भी लोकप्रिय है। वर्ष 2008 में प्रदर्शित फिल्म ‘युवराज’ की विफलता के बाद सुभाष घई ने फिल्मों का निर्देशन करना बंद कर दिया। वर्ष 2014 में प्रदर्शित फिल्म ‘कांची’ के जरिए बतौर निर्देशक कमबैक किया लेकिन यह फिल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई।
अकसर फिल्म के सीन में आते हैं नजर
सुभाष घई न सिर्फ अपनी इन खास फिल्मों के लिए जाने जाते हैं, बल्कि अपने खास ट्रेडमार्क अंदाज के साथ वह अकसर फिल्म के किसी सीन में भी जरूर नजर आते हैं। 70 के दशक के आखिर में उनकी फिल्म ‘क्रोधी’ फ्लॉप हुई तो लोगों ने कहा कि उनका कॅरियर खत्म हो गया लेकिन इसके बाद उन्होंने विधाता, हीरो, कर्ज, राम-लखन जैसी बेहद कामयाब फिल्में दीं।
सुभाष घई ने जितनी हीरोईनों को बॉलीवुड में इंट्रोड्यूस किया, उन सबका नाम अंग्रेजी के M अक्षर से शुरु होता था, क्योंकि इस शब्द को वे लकी मानते हैं। फिल्म हीरो में उन्होंने मीनाक्षी शेषाद्री को इंड्रोड्यूस किया। राम लखन में माधुरी दीक्षित को और सौदागर में मनीषा कोईराला को। इतना ही नहीं परदेश की हीरोइन रितु चौधरी का नाम बदलकर भी उन्होंने महिमा चौधरी रख दिया। 2014 में एक फिल्म में उन्होंने इन्द्राणी मुखर्जी का नाम बदलकर ‘मिष्टी’ रखा। सुभाष घई की वाइफ का नाम मुक्ता है और बैनर का नाम भी उन्होंने मुक्ता आर्ट्स रखा है।
संजय दत्त को जड़ा था थप्पड़
फिल्म ‘विधाता’ की शूटिंग के समय का एक वाकया बताया जाता है। दरअसल सेट पर नशे में धुत्त संजय दत्त एक्ट्रेस पद्मिनी कोल्हापुरी से बदतमीजी करने लगे थे, जिससे परेशान होकर पद्मिनी डर कर सेट छोडकर भाग गयीं। इस के बाद सुभाष घई पद्मिनी को समझा के वापस सेट पर लेकर आए पर संजय अपनी हरकतों से बाज नही आ रहे थे। गुस्सा आकर सुभाष घई ने संजय दत्त को सबके सामने जडकर थप्पड जड़ दिया था।