पुनर्जन्म का फार्मूला भारत से हॉलीवुड पहुंचा
कमाल अमरोही ने 1949 में पुनर्जन्म पर पहली फिल्म ‘महल’ (आएगा आने वाला आएगा) बनाई थी। उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि वे सिनेमा को ऐसा फार्मूला दे रहे हैं, जिसका हर दौर में दोहन होता रहेगा। भारत में इस फार्मूले पर ‘महल’ से ‘राब्ता’ (2017) तक दर्जनों फिल्में बन चुकी हैं। बॉलीवुड आम तौर पर हॉलीवुड की कहानियां उड़ाता है, लेकिन पुनर्जन्म का फार्मूला भारत से हॉलीवुड पहुंचा। वहां भी ‘माय रिइनकार्नेशन’, ‘क्लाउड एटलस, ‘डेड अगेन’, ‘द रिटर्न’, ‘बर्थ’ और ‘द फोग’ समेत बेशुमार फिल्में बन चुकी हैं।
इन फिल्मों में दोहराया गया ये फार्मूला
‘महल’ के बाद पुनर्जन्म पर बिमल रॉय की ‘मधुमति’ (सुहाना सफर और ये मौसम हसीं) भी क्लासिक फिल्म का दर्जा रखती है। इसकी कहानी ऋत्विक घटक और राजिंदर सिंह बेदी ने लिखी थी। ‘मिलन’ (सुनील दत्त, नूतन), ‘नीलकमल’ (वहीदा रहमान, मनोज कुमार), ‘महबूबा’ (राजेश खन्ना, हेमा मालिनी), ‘सूर्यवंशी’ (सलमान खान, शीबा), ‘प्रेम’ (तब्बू, संजय कपूर), ‘हमेशा’ (काजोल, सैफ अली खान) समेत कई और फिल्मों में यह फार्मूला दोहराया गया।
हॉलीवुड में भी पुनर्जन्म का किस्सा
हॉलीवुड की ‘द रिइनकार्नेशन ऑफ पीटर प्राउड’ (1975) पर डॉलर बरसे, तो उसकी कहानी पर सुभाष घई ने 1980 में ‘कर्ज’ बनाई। इसमें एक लालची युवती (सिमी ग्रेवाल) अपने प्रेमी (राज किरण) की हत्या कर देती है। प्रेमी दूसरे जन्म (ऋषि कपूर) में बदला लेता है। ‘कर्ज’ का गीत ‘ओम शांति ओम’ काफी चला था। कई साल बाद इसी नाम से शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण को लेकर फिल्म बनी। इसमें भी पुनर्जन्म का किस्सा है।
‘करण अर्जुन’ का फेमस डायलॉग
अगर किसी फिल्मी गीत में ‘दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहां’ जैसी अबूझ पहेली होती है, तो ‘अगर न मिलते इस जीवन में लेते जनम दोबारा’ जैसे जवाब भी बिखरे पड़े हैं। ‘ओ जाने वाले हो सके तो लौटके आना’ की पुकार का सम्मान करते हुए फिल्मों के किरदार मरकर लौट आते हैं। ‘करण अर्जुन’ में राखी पुख्ता यकीन के साथ कहती हैं- ‘मैं तो बूढ़ी हो गई हूं। मेरी आंखें कमजोर हो गई हैं, लेकिन मेरा विश्वास कमजोर नहीं हुआ है। मेरे करण अर्जुन आएंगे। जमीन की छाती फाड़के आएंगे। आसमान का सीना चीरके आएंगे।’ अब जमीन-आसमान भले हैरान हों, फिल्में जब चमत्कार को नमस्कार करती हैं, तो कुछ भी हो सकता है।