दिलीप कुमार से नाराजगी के बारे में खुद लता मंगेशकर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह संगीतकार अनिल विश्वास और दिलीप कुमार के साथ एक दिन मुंबई की ट्रेन में थीं तब दोनों एक दूसरे से सही से जानते भी नहीं थे।अनिल विश्वास ने दिलीप कुमार से लता का परिचय कराते हुए कहा कि यह लड़की बहुत अच्छा गाती है तब दिलीप कुमार ने नाम पूछा और नाम जानने के बाद कहा कि क्या मराठी है जब अनिल विश्वास ने कहा कि हां. इस पर दिलीप कुमार ने कहा कि मराठी लोगों की उर्दू दाल-चावल जैसी होती है उनका मतलब था कि वे सही उच्चारण नहीं कर पाते।
यह बात लता मंगेशकर को बुरी लग गई। असल में दोनों को ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म मुसाफिर में एक गाना साथ गाना थाः लागी नाही छूटे. गाना रिकॉर्ड हुआ और लता ने शानदार ढंग से गाया। दिलीप कुमार उनके आगे घबराए-से रहे। लेकिन दिलीप कुमार की टिप्पणी से नाराज लता मंगेशकर ने उस दिन से लेकर पूरे 13 साल उनसे बात नहीं की।
फिर बंधी पहली राखी
इसके बाद वक्त आया, जब लेखक खुशवंत सिंह ने अपने संपादन में निकलने वाली एक पत्रिका द इलस्ट्रेडेट विकली ऑफ इंडिया के अगस्त 1970 के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दोनों हस्तियों को साथ लाने का सोचा। उन्होंने सीनियर पत्रकार राजू भारतन को लता मंगेशकर को दिलीप कुमार के घर लाने की जिम्मेदारी दी। यह खुशवंत सिंह का आइडिया था कि दिलीप कुमार को लता मंगेशकर राखी बांधेंगी और तस्वीर को पत्रिका के कवर पर प्रकाशित किया जाएगा।
खुशवंत सिंह ने इस तस्वीर को हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई शीर्षक से छापा और पत्रिका का वह अंक देखते-देखते लोगों ने खरीद डाला। यह पहला मौका था जब दिलीप कुमार और लता मंगेशकर संग नजर आए थे। मगर वह तस्वीर सिर्फ दिखावे की नहीं रही। दोनों एक-दूसरे को सच्चे हृदय से भाई-बहन की तरह स्वीकार किया और पूरी जिंदगी के लिए रिश्ते में बंध गए।