भारत सबसे कम उत्पादकता दर वाला देश है। यह साफ है कि काम के घंटों का उत्पादकता से कोई लेना-देना नहीं है फिर भी उत्पादकता में वृद्धि के लिए बड़े नीतिगत सुधार, एक मजबूत मानव पूंजी आधार का निर्माण और श्रमिकों के मानसिक और शारीरिक कल्याण में सुधार जरूर होने चाहिए, जिससे काम करने वाले लोगों को जो दिक्कतें अभी झेलनी पड़ती है वो ना झेलनी पड़े, आइए अब जापान और जर्मनी के मामलों पर एक नजर डालते हैं।
‘विदेशों में जो तकनीक है वो भारत में हो इस्तेमाल’
जापान ने सूती कपड़ा और जहाज निर्माण जैसे बड़ें उद्योगों की एक श्रृंखला स्थापित की और ये राज्य के स्वामित्व वाले थे। इनमें से कई काम फेल हुए, पर इसके बावजूद इन कामों ने कारीगरों और प्रबंधकों को तैयार किया जिससे निजी क्षेत्र का एक मजबूत आधार बनाने में मदद मिली। साथ में घरेलू उत्पादन को भी बढ़ावा दिया गया और आयात पर शुल्क बढ़ाये गए। इसके बाद 1914 तक जापान का सूती कपड़े का काम इतना सफल हो पाया।
जापान और जर्मन में 40 घंटे किया जाता है काम
विश्व युद्ध की वजह से जर्मन ने काफी तबाही झेली, इसके बाद भी उसकी अर्थव्यवस्था की वापसी को ‘जर्मन आर्थिक’ चमत्कार कहा जाता है। यहां भी हम राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका देख सकते हैं। जर्मनी ने एक सामाजिक बाज़ार अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जिसने मुक्त बाज़ार पूंजीवाद दोनों को बढ़ावा दिया और साथ ही सरकार को सामाजिक नीतियां बनाने की अनुमति दी। सामाजिक बीमा योजनाओं के नेटवर्क के कारण श्रमिकों को बीमारी और बेरोजगारी से बचाया गया।
जर्मनी में दुर्घटना बीमा भी दिया जाता है जो ऑफिस दुर्घटनाओं के समय मदद करता है, वहीं कम सैलरी वाले परिवारों को घर भी दिए जाते हैं। जर्मनी में बच्चो और परिवार के लिए कई काम किए जाते हैं। श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए ये सामाजिक सुरक्षा देना बेहद जरूरी माना जाता है। बता दें, जर्मनी और जापान दोनों में, एक दिन में सिर्फ 8 घंटे काम किया जाता है और पूरे हफ्ते केवल 40 घंटे लोग काम करते हैं।